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________________ तथा उनक पारेवार के लोग केवल अतिथि ही बनकर रहे और कार्य-कलाप समाप्त होने पर घर लौट गये। अपने से कम हैसियत के चिण्णम दण्डनाथ पर काम-काज की जिम्मेदारी डाली गयी थी इससे उन्हें थोड़ा-बहुत असमाधान भी हुआ हो-तो कोई आश्चर्य न था। फिर भी किसी तरह के असमाधान अथवा मन-मुटाव को अवकाश ही नहीं मिला। __ चामव्वा को तो पूरा असन्तोष रहा। उसकी अभिलाषा को प्रोत्साहन मिल सके, ऐसी कोई बात युवरानीजी के मुँह से नहीं निकली। बदले में उनकी बातों में कुछ उदासीनता ही प्रकट हो रही थी। असमाधान क्यों होना चाहिए-यह बात चामल्वा की समझ से बाहर की थी। उसने क्या चाहा था सो तो नहीं बताया था। इस हालत में इनकार की भावना के भान होने की कौन-सी बात हो गयी थी। स्वार्थी मन इन बातों को नहीं समझता-यों ही क्रोधाविष्ट हो जाता है। उसने सोचा था कि युवरानी के अन्त:पुर में स्वतन्त्र होकर खुलकर मिलने-जुलने और सबसे बातें करने का अवसर मिलेगा। ऐसा सोचना गलत भी नहीं था क्योंकि दोरसमद्र में उसे इस तरह की स्वतन्त्रता थी। वह स्वातन्त्र्य यहाँ भी रहेगा-ऐसा सोचना भूल तो नहीं थी। परन्तु चामध्वा के इस मानसिक क्षोभ का कारण यह था कि अपने से कम हैसियतवाली चिण्णम दण्डनायक की पत्नी चन्दलदेवी को यह स्वातन्त्र्य मिला था जो इसे मिलना चाहिए था, और एक साधारण हेग्गड़ती को अपने से अधिक स्वतन्त्रता के साथ सबसे मिलने-जुलने का अवसर दिया गया था। इससे वह अन्दर-ही-अन्दर कुढ़ रही थी। परन्तु अन्दर की इस कुढ़न को प्रकट होने न दिया । दूर भविष्य की आशा-अभिलाषा उसके मन ही में सुप्त पड़ी थी। उसे जाग्रत कर दूर भगाना किससे सम्भव हो सका था? अपने कोख की तीनों लड़कियों का युवरानी के तीनों लड़कों से परिणय कराने की अभिलाषा को पूरा करने के लिए उपयुक्त प्रभावशाली रिश्ते-नातों के होते हुए, इस कार्य को किसी भी तरह से साधने की इस महत्वाकांक्षा को प्रकट करने की मूर्खता वह क्यों करेगी? उपनयन-समारम्भ के समाप्त होने के बाद एक दिन अन्तःपुर में शान्तला के संगीत और नृत्य का कार्यक्रम रहा। इस समारम्भ में केवल स्त्रियाँ ही उपस्थित रहीं। युवरानी एचलदेवी इस संगीत एवं नृत्य को देखकर बहुत प्रभावित हुईं। बालक बिट्टिदेव और उदयादित्य तो थे ही। इन बालकों को अन्तःपुर में रहने के लिए मनाही नहीं थी, क्योंकि वे अभी छोटे थे। वटु बल्लाल अभी उपनीत थे, इसलिए उनके लिए खास स्थान था। सभी ने गाना सुना, नृत्य देखा। सभी को बहुत पसन्द आया। नृत्य के बाद शान्तला अपनी माँ के पास जाकर बैठ गयी। युवरानी ने सहज ही चामव्वा से पूछा, "क्यों चामट्याजी, आपने अपनी पुत्रियों को नृत्य-संगीत आदि सिखलाया है?" पट्टमहादेवी शान्तला :: 47
SR No.090349
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages400
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size8 MB
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