SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 400
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ की बातें मन में दहराती रही, फिर बोली, "पिताजी, मेरे विचार गलत हों तो क्षमा करें। जो सूझा उसे निवेदन कर रही हूँ। आपकी बातों से ऐसा लगता है कि वह आप्त व्यक्ति हमारी माँ ही हो सकती है।" यह बात सुनकर मरियाने के चेहरे पर व्यंग्य की रेखा खिंच गयी, "तुम्हें ऐसा भान क्यों हुआ, बेटी?" "वे कुछ समय से राजकुमार के या राजमहल के सम्बन्ध में बात ही नहीं करतीं। एक दिन मैंने पूछा तो बोली कि रोज-रोज वे ही बातें क्यों करनी ?'' "कुछ भी कारण हो बेटी, तुम अपनी माँ से इस विषय में कुछ भी बात न करना। और राजकुमार से मिलने में भी किसी तरह का उतावलापन प्रकट न करना। समय आने पर सब ठीक हो जाएगा।" "इस तरह की चेतावनी का कारण मालूम होता तो...।" मरियाने नील ही में बोलते. "लेटी, मैं पहले ही कह चुका हूँ कि कारण जानने की आवश्यकता नहीं / यह बात जितने कम लोगों को मालूम हो उतना ही अच्छा रहेगा। अब जिन-जिनको मालूम है उन्हें छोड़ किसी और को यह मालूम न हो, यही प्रधानजी का आदेश है। उनके इस आदेश के पालन में ही हमारे परिवार की और तुम्हारी भलाई है। बेटी, यह शरीर पिरियरसी पट्टमहादेवी केलेयब्बरसीजी के प्रेमपूर्ण हाथों में पालित होकर बढ़ा है। हमारे घराने के अस्तित्व का कारण भी वे ही हैं। हमारे और राजघरानों में एक निष्ठायुक्त सम्बन्ध स्थापित रहा है। कोई नयी गलती करके इस सम्बन्ध का विच्छेद होने नहीं देना चाहिए। अब मौन रहने से उत्तम कार्य कोई नहीं। तुम लोग अपना दैनिक अभ्यास निश्चिन्त होकर चालू रखो। अब चलो / बार-बार इसी विषय को लेकर बात करना बन्द करो।" उन्होंने स्वयं उठकर किवाड़ खोले। पद्यला गम्भीर मुद्रा में कुछ सोचती हुई प्रांगण को पार कर बड़े प्रकोष्ठ में आयी ही थीं कि उस माँ की आवाज सुन पड़ी। वह अभी अभी ही आयी थीं। इसलिए वह मुड़कर सीधी अपने अभ्यास के प्रकोष्ठ में चली गयी और तानभूरा लेकर उसके कान ऐंठने लगी। श्रुति ठीक हो जाने पर उसी में लीन हो गाने लगी। उसकी उस समय को मानसिक स्थिति के लिए ऐसी तन्मयता आवश्यक थी। सबकुछ भूलकर संयत होने का इससे अच्छा दूसरा साधन ही क्या हो सकता था? 000
SR No.090349
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages400
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy