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________________ न क्षमा मांग लेता? हेग्गड़े दम्पती पर ताम्हें विद्वेष की भावना क्यों है?" "क्यों है और है भी या नहीं, सो तो मालूम नहीं, भैया, परन्तु वे मेरे रास्ते के काँटे जरूर हैं। आप कन्या के पिता होते और उसे एक अच्छी जगह ब्याह देना चाह ह हासे और बाई आपके आई आजा को कायर अ झते कि उनके प्रति मेरा व्यवहार ठीक है या नहीं।" "चाम, हमने भी माना कि तुम्हारी कामना सही है, इसीलिए मैंने भी उसे सफल करने का प्रयत्न करने का वचन दिया था। फिर भी हम दोनों को बताये बिना तुमने ऐसा काम किया तो स्पष्ट है कि तुम्हें हमपर विश्वास नहीं। तब तो हमें यही समझना पड़ेगा कि तुम्हें अपनी शक्ति का पूर्ण परिचय है।'' "भैया, गलती हुई। यह सारी बात मुझ अकेली के मन में उत्पन्न हुई और मुझ अकली से ही यह काम हुआ है, इससे मैं समझती थी कि किसी को पता न लगेगा।'' "द्रोह, अन्याय कितने ही गुप्त रखे जाएं वे जरूर किसी-न-किसी तरह से प्रकट हो ही जाते हैं। अभी थोड़ी देर पहले उस वामशक्ति पण्डित के यहाँ जो गयी सो क्या तुमने समझा कि मुझे मालूम नहीं हुआ? घर में किसी को बताये बिना वहाँ जाने का ऐसा कौन-सा काम आ पड़ा था?" मरियाने दण्डनायक में चकित होकर पत्नो को और देखा जो भाई के इन सवालों से मर्माहत -सी होकर सोच रही थी कि भाग्य ने उस झूठ बोलने से बच्चा लिया, नहीं तो भाई के मन में अपनी बहिन के प्रति कौन-सी भावना उत्पन्न होती। मगर लगता हैं, मेरे ही भाई ने मेरे पीछे कोई गुप्तचर तैनात कर रखे हैं। पोय्सल राज्य के महादण्डनायक की पत्नी और प्रधान गंगराज की बहिन होकर भी इस तरह सूक्ष्म गुप्तचरी की शिकार हुई तो मेरा गौरव ही कहाँ बचा। उस सृझा नहीं कि अब क्या उत्तर दे. सर झुकाकर बैठ गयो।। "क्यों चाम, कुछ बानी नहीं, चुप क्यों बैठी हो, मनुष्य की दृष्टि सदा आगेआगे रहती हैं, अपने ही पद-चिह्नों पर नहीं जाती। क्यों यह सब कर रही हो, तुम पर किसी दुष्ट ग्रह का आवाहन हुआ है क्या?" "आप ही यह निर्णय करें कि क्या हुआ है, भैया। अपनी बच्चियों की कसम खाकर कहती हूँ, मेरी एक बात सुना। मेरी बच्चियों की प्रगति में कछ बाधाएं उपस्थित होने की सम्भावनाएँ दिख रही हैं। इन बाधाओं से अपनी बच्चियों की रक्षा मेरा कर्तव्य है। कंबल यही एक कारण है कि मैंने जो भी किया, किया है।'' "नहीं चाम, सभी छोटी-मोटी बातों के लिए बच्चियों को कसम मत खाओ। तुम्हारी जानकारी के बिना ही तुम्हारे मन में असया ने घर कर लिया है। वह तुम्हें नया रही है और भटका रही है, बच्चियों को शापग्नस्त क्यों बनाती हो।। "ना मतलब यह कि तुम्हें मेरी कठिनाई मालूम ही नहीं हैं।" 'पट्टमहादेवो शान्जला :: 7
SR No.090349
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages400
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size8 MB
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