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________________ 1 शान्तला ने संगीत और नृत्य की सेवा देवी को अर्पित भी की, बड़ी श्रद्धा और भक्ति के साथ उस दिन लाल चम्पक पुष्पों की माला से देवी की मूर्ति शोधत श्री पूजा, संगीत - सेवा और नृत्य सेवा के बाद आरती उतारी गयी। ठीक आरती उतारते समय देवी की दक्षिण भुजा पर से वह माला खिसकी। पुजारी ने उसे उठाया। माला को ज्योंका-त्यों बाँधा । उसे लाया । अम्माजी से - "यह देवी का प्रसाद हैं, सेवा से सन्तुष्ट होकर देवी ने यह आपको दिया है। यह केवल मेरे सन्तोष का प्रतीक मात्र नहीं, बल्कि यह सन्तोष एक नित्य सत्य हो जाए इसकी यह सूचना है।" कहकर निस्संकोच भाव से वह माला पुजारी ने शान्तला के गले में पहना दी। वे लोग वहाँ से पूर्व निश्चय के अनुसार रास्ते में जहाँ-जहाँ ठहरने की व्यवस्था की गयी थी वहाँ ठहरते हुए, आराम से आगे बढ़े। सुख से रास्ता पार करते हुए एक सप्ताह के बाद वे सब सोसेऊरु पहुँचे । वहीँ उनका हार्दिक स्वागत हुआ। माचिकब्बे के सारे सन्देह दूर हो गये। खुद रेविमय्या और गोंक ही इनकी व्यवस्था के काम पर नियुक्त थे। सूर्यास्त के पहले वे सोसेकर पहुँचे थे। सब लोग थोड़े-बहुत थके हुए-से लग रहे थे। पहाड़ी प्रदेश के ऊबड़-खाबड़ और ऊँची-नीची उतार- चढ़ानोंवाले रास्ते पर गाड़ियों के हिचकोले खाने के कारण थके होने से किसी को कुछ खाने-पीने की इच्छा नहीं थी। फिर भी थोड़े में सब समाप्त कर सब लोग आराम करने लगे। दूसरे दिन सुबह राजमहल से हेग्गगड़ती माचिकब्बे को ले जाने के लिए एक पालकी आयी। माँ माचिकब्बे बेटी शान्तला को साथ ले जाना चाहती थी। इसलिए शीघ्र चलने को तैयार होने के लिए कहा। शान्तला ने कहा, "माँ, मैं अब नहीं जाऊँगी। आज मेरा नया पाठ शुरू होगा ।" 'अगर युवरानीजी पूछें तो मैं क्या जवाब दूँ?" 44 "युवरानी ने तो मुझको देखा ही नहीं। वे क्यों मेरे बारे में पूछेंगी ? आप लोग बड़े हैं। मेरा वहाँ क्या काम है ?" शान्तला ने बड़े अनुभवी की तरह कहा । माचिकब्बे अकेली ही गयी। बड़ी आत्मीयता से युवरानी ने हेम्गड़ती का स्वागत किया। कुशल प्रश्न के बाद कहा, "सभी को राजमहल में ठहराने की व्यवस्था स्थानाभाव के कारण न हो सकी। अन्यथा न समझें। इसीलिए राजमहल से बाहर ही सबके लिए व्यवस्था की गयी है। हमारे प्रभु को बलिपुर के हेगड़ेजी के विषय में बहुत ही आदर भाव है। उनके बारे में सदा बात करते रहते हैं। रेविमय्या, जो आपके यहाँ निमन्त्रण- पत्र दे आया था वह बारम्बार हेग्गड़तीजी की उदारता के विषय में कहता ही रहता है। इतना ही नहीं, अम्माजी के बारे में भी कहता रहता है। जब वह पट्टमहादेवी शान्तला 40::
SR No.090349
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages400
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size8 MB
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