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________________ सुनाई देने का कारण यह बालुकामय भूमि है, मैं नहीं। मैं क्या करूं?' 'मौं, आपका यहाँ ठहरना एक अनपेक्षित घटना है, इसके लिए मुझे दुख नहीं। परन्तु मेरा मन:संकल्प पूर्ण करने का अनुग्रह करें।' आचार्य की इस विनती से देवी सन्तुष्ट हुई और कहा, 'दशहरे के पूरे नौ दिन, अपने संकल्प के अनुसार जिस स्थान पर प्रतिष्ठा करोगे, वहाँ मैं अपने सम्पूर्ण-तेज के साथ रहूंगा।' आचार्यजी के उस अनुभव का प्रतीक है यह खड़ी हुई शारदा माँ की मूर्ति । यह शारदा चंचला नहीं। सर्वदा ज्ञान-भिक्षा देने के लिए तैयार होकर यह शारदा खड़ी है!" पुजारी ने कहा। शान्तला ने उस खड़ी शारदा को देखा। आँखें बन्द कर हाथ जोड़े रही। उसके कान खड़े हो गये । शरीर हर्षोल्लास से रोमांचित हो उठा। उसके चेहरे पर मुसकराहट की एक लहर दौड़ गयी। होठ खुले । कहा, "माँ, मुझे भी ज्ञान-भिक्षा दो।" ये शब्द शान्तला के मुंह से निकले । तुरन्त उसने दण्डवत् प्रणाम किया। उस पूरे दिन वे लोग वहीं ठहरे। उस दिन श्री शारदा देवी के समक्ष, उनकी सन्निधि में ही पाठ-प्रवचन सम्पन्न हुआ। उस समय पुजारी भी वहीं उपस्थित रहा। शान्तला की श्रद्धा और विषय ग्रहण करने की प्रखर मेधा को देखकर पुजारी चकित रह गया। पाठ-प्रवचन समाप्त होने के बाद पुजारी ने बोकिमय्या से पूछा, "कविजी, सोसेऊरु जाने के लिए यह सीधा मार्ग तो नहीं है। फिर भी इधर से होकर जाने का क्या उद्देश्य है?" बोकिमय्या ने कहा, "माँ शारदा का अनुग्रह प्राप्त कर आगे जाने के उद्देश्य से ही इस रास्ते से चले आये।" "श्री शारदा देवी ने ही ऐसी प्रेरणा दी होगी। बहुत अच्छा हुआ। अम्माजी में इस छोटी उम्र में ऐसी प्रतिभा है जैसी इस उम्र के बच्चों में सम्भव ही नहीं। आचार्य शंकर भगवत्पाद छोटी उम्र में, सुनते हैं, ऐसे ही प्रतिभासम्पन्न थे।" पुजारी ने कहा। "न न, ऐसी बात न करें। यों तुलना नहीं करनी चाहिए, यह ठीक नहीं। हमारे गुरुजी ने श्री शंकर भगवत्पाद के बारे में बहुत-सी बातें बतायी हैं। वे विश्ववन्ध हैं। आठ वर्ष की आयु में चारों वेदों के पारंगत और बारह की आयु में सर्वशास्त्रों के ज्ञाता, सोलह में भाष्यों की रचना करनेवाले वे ज्ञान-भण्डारी जगद्वन्ध हैं। युग-युगान्तरों में लोकोद्धार के कार्य को सम्पन्न करने के लिए ऐसे महात्मा जन्म धारण करते हैं। हम साधारण व्यक्तियों के साथ ऐसे महान् ज्ञानी की तुलना हो ही नहीं सकती। इतना ही नहीं, तुलना करना बिलकुल ही अनुचित है।" कहकर शान्तला ने बेहद बढ़ा-चढ़ाकर प्रशंसा करनेवाले पुजारी को प्रशंसा करने से रोक दिया। ___ छोटे मुंह में कितनी बड़ी बात! पुजारी को मालूम हो गया था कि अम्माजी संगीत और नृत्य में भी निष्णात हैं। अत: उसने रात की पूजा के समय प्रार्थना की कि संगीत और नृत्य की सेवा देवी के समक्ष हो, जिससे देवी शारदा भी सन्तुष्ट हों। पट्टमहादेवी शान्तला :: 39
SR No.090349
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages400
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size8 MB
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