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________________ I - ध्वनि थी। भगवान बुद्ध की वाणी सुनकर उसका केवल भ्रम निरसन ही नहीं हुआ बल्कि उसी क्षण से उसने शस्त्र संन्यास ले लिया और धर्म चक्र की स्थापना की अनुकम्पा की अधिदेवी, पाप-निवारिणी भगवती तारा मानवोद्धार कार्य को उसी धर्मचक्र के आधार पर चलाती रही हैं।" तापसी नागियक्का ने समझाकर कहा। उम्र के बढ़ने के साथ मानव की ध्वनि में कम्पन होता है. यह वयोधर्म है परंतु अव की ध्वनि में कम्पन्न नहीं, काँसे की-सी स्पष्ट ध्वनि थी। सबने एकाग्र भाव से अक्का की बातें सुनीं। उनका प्रवचन रुका तो बिट्टिदेव ने पूछा, "तो क्या इसीलिए आपने यहाँ भगवती तारा की स्थापना की है ?" W "शिल्पी इसे बनानेवाला हैं, भक्त लोग इसकी स्थापना करनेवाले हैं, फिर भी कोई कहे कि मैंने स्थापना की है, तो इसके माने नहीं हैं। ऐसे जन कार्य तो जनता द्वारा जनता के लिए होने चाहिए।" नायिककाजी ने सटीक उत्तर दिया। - " ऐसे कार्यों में लोगों को प्रेरित करनेवाले को ही जनता कर्ता और स्थापक मानती है, जो ठीक हैं, योग्य है।" कवि नागचन्द्र ने कहा । "हाँ, यह एक कवि की व्यवस्था है और सटीक ही हैं क्योंकि धर्मोपदेश नोट होने के बदले काव्यमय हो तो वह अधिक आनन्ददायक और सहज ग्राह्य होता है नागिसक्के ने कवि का सुन्दर ढंग से समर्थन किया। - " जातक कथाएँ तो यही काम करती हैं।" नागचन्द्र ने कहा । " इन बच्चों को उन कथाओं से परिचित कराया है ?" नागियक्का ने पूछा। नागचन्द्र ने 'नहीं' कहकर कवि बोकिमय्या की ओर देखकर पूत्र "" भ्या आपने अम्माजी को सुनायी हैं जातक कथाएँ ?" "कुछ, सो भी पढ़ाते समय प्रासंगिक रूप में, लेकिन पहले एक बार अम्माजी जब यहाँ आयी थीं तब जातक कथाएँ इन प्रस्तरों पर उत्कीर्ण देखकर उन्होंने पूछा था. तब मैंने कुछ कथाएँ बतायी थीं।" बोकिमय्या ने उत्तर दिया। "मैं तो आज भी नहीं देख सका।" बिट्टिदेव ने तुरन्त खेद व्यक्त किया। "झुण्ड में अनेक बातों की और ध्यान नहीं जा पाता, एक बार फुरसत से आकर देखेंगे।" बोकिमय्या ने समाधान किया। - इस सम्भाषण को ऐसे ही चलने दें तो आज दिन भर यहीं रहना होगा। यह सोचकर मान्त्रिकब्बे ने अक्काजी से अनुमति माँगी, "वहाँ से कोई हमें बुलाने आए इसके पहले हमारा घर पहुँच जाना अच्छा होगा।" और उसने नागिसक्का को साष्टांग प्रणाम किया। युवरानी और शेष लोगों ने भी प्रणाम किया। बुद्धरक्खित ने सबको प्रसाद दिया । सबके पीछे रेविमय्या था । बुद्धरक्खित ने उससे पूछा, "सन्निधान के कहने मे 34 :: पट्टमहादेवी शा i ¦ 1
SR No.090349
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages400
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size8 MB
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