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________________ उपनयन का शुभ मुहूर्त शक संवत् 1018, धातु संवत्सर उत्तरायण, ग्रीष्म ऋतु ज्येष्ठ मास के शुक्ल पंचमी बृहस्पतिवार को जब गुरु-चन्द्र कर्कटक में शुभ नवांश में थे, तब पुनर्वसु नक्षत्र में कर्कटक लान में निश्चित था। इस लग्न के लाभस्थान में रवि के रहने से माता-पिता के प्राण स्वरूपचन्द्र, रवि और गुरु की शुभस्थिति को मुख्यतया गणना कर उपनयन का मुहूर्त निश्चित किया गया था। चैत के अन्त तक सभी के पास आमन्त्रण पत्र पहुँच गये। बुद्ध पूर्णिमा के बाद युवराज-परिवार की सवारी चेलापुरी से दोरसमुद्र के लिए रवाना हुई। इन आठ-दस महीनों में वे चार-छह बार वेलापुरी आ चुके थे। मरियाने भी दो-तीन बार वहाँ गया था। युवराज एरेयंग प्रभु ने मानो दूसरे ही मरियाने को देखा था, जिससे एरेयंग प्रभु निश्चिन्त-से थे। खुद मरियाने से यह सुनकर कि चामध्ये ने ही भूल की ओर ध्यान आकर्षित करके हेग्गड़ेजी मारसिंगय्या का नाम लिखाया, युवरानी ने समझा कि अब दण्डनायक दम्पती ने हमारी इच्छा-अनिच्छाओं को समझने की कोशिश की है। हमारी कृपा चाहनेवाले वे हमारे मन को दुखाने का काम अव नहीं करेंगे, ऐसी उनकी धारणा बनी। जेठ का महीना आया। आमन्त्रित एक-एक कर दोरसमुद्र पहुंचने लगे। अबकी बार भी राजमहल में किसी को नहीं ठहराया गया। सोसेऊरु की ही तरह किसी तारतम्य के बिना सबको अलग-अलग ठहरने की व्यवस्था की गयी थी। युवरानी एचलदेवी से चामब्बे ने पूछा, "हेगाड़तीजी के ठहरने की व्यवस्था राजमहल में ही की जानी चाहिए न?" "क्या उनके सींग हैं? किसी भी अतिथि के लिए राजमहल में स्थान की व्यवस्था न रहेगी। ऐसे समय इस तरह का भेदभाव उचित नहीं" युवरानी ने स्पष्ट कहा। उसके दिमाग में युवरानी के क्या उनके सींग है ' शब्द मैंडरा रहे थे। युवरानीजी के मुँह ऐसी बात, सो भी उसके बारे में जिसपर उनका अपार प्रेम और विश्वास है? इस पर चामध्ये बहुत खुश हुई। उसने सोचा हेग्गड़ती का रहस्य खुल गया है। अच्छा हुआ। उसे युवरानीजी का मन तपाया हुआ सोना लगा जिसे जब वह गरम है तभी अपनी इच्छा के अनुरूप रूपित कर देना चाहिए। इसी उत्साह से वह फूल उठी। उसकी आन्तरिक धारणा थी कि राज-परिवार की सेवा करनेवाले या उसपर इतनी निष्ठा रखनेवाले उससे अधिक कोई नहीं। वह कब खाती, कब विश्राम लेती किसी पट्टमहादेवी शान्तला :: 113
SR No.090349
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages400
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size8 MB
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