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________________ मां से कुछ भी जानकारी न मिलने पर चामला ने ढीठ होकर पिताजी से ही पूछ लिया। उ कहा, "सम स ब होगा हम जल्दाजी करेंगे तो चलेगा नहीं। इतना ही नहीं, शादियाँ हमारी इच्छा के अनुसार तो नहीं होती। भगवान् ने किस लड़के के साथ किस लड़की की जोड़ी बना रखी है, कौन जाने। तुम लोग अपने अध्ययन की ओर ध्यान दो। एक बार एक महात्मा ने कहा था, हम यदि खोजने निकलें तो वह दूर भागता है, हम विमुख हो जाएँ तो वही हमें खोजता आएगा" चामला का कोई स्वार्थ नहीं था अत: उसे निराशा नहीं हुई । वास्तव में बिट्टिदेव के कारण उसकी लगन अध्ययन और ज्ञानार्जन की ओर बढ़ गयी थी। वोप्पि अभी-अभी पढ़ाई में लगी थी। उधर बलिपुर में शान्तला प्रगति के पथ पर थी। अभी-अभी उसने शिल्पशास्त्र सीखना शुरू किया था। इसके लिए वह सप्ताह में एक बार बलिपुर के महाशिल्पी दासोज के घर जाया करती। बोकिमय्या, शिल्पी गंगाचारी और दासोज की ज्ञानत्रिवेणी में शान्तला नित्यप्रति निखर रही थी। बड़ी रानी चन्दलदेवी के साथ रहकर भी शान्तला ने अनेक बातें सीखी थीं। इधर कुछ महीनों में वह कुछ बढ़ी लग रही थी। पिता हेगड़े भारसिंगय्या ने जो लकीर बनायी थी उस तक वह करीब-करीब पहुँच गयी थी। निर्णीत समय से कुछ पहले ही शस्त्र-विद्या का शिक्षण शुरू हो गया। खुद सिंगिमय्या को हेग्गड़े मारसिंगय्या ने यह काम सौंपा था। परन्तु बलिपुर के जीवन में थोड़ा-सा परिवर्तन दिख रहा था। अब होगड़े दम्पती और उनकी पुत्री पर विशेष गौरव के भाव व्याप्त थे। वह गौरव भावमा पहले भी रही, परन्तु अब उन्हें राज-गौरव प्राप्त होता था। चालुक्य सम्राज्ञी उनके यहाँ कई महीने अतिथि बनकर रहीं। स्वयं पाय्सल युवराज यहाँ मुकाम कर चुके थे। लोगों को यह सारा विषय मालूम था और वे इस पर गर्व भी करते थे। बूतुग को अब गाँव के बाहर के पीपल की जगत पर बैठकर गूलर के फल अंजीर समझकर खाने की फुरसत नहीं मिल रही थी। अनेक बार हेग्गड़ेजी अपने प्रवास में उसे साथ ले जाया करते। ब्रूतुग की मान्यता थी कि दासब्चे उसके लिए एक अलभ्य लाभ है। दासब्बे के प्रति उसके प्रेम का फल मिलने के आसार दिखने लगे थे। दासब्बे को देखकर ग्वालिन मल्लि को ईर्ष्या न हो, पर यह चिन्ता जरूर हो रही पट्टमहादेवी शास्सला :: 311
SR No.090349
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages400
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size8 MB
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