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________________ "मेरे मन में ऐसी कोई बात नहीं थी। फिर भी अम्माजी ने बहुत दूर की बात सोची है।" "बात क्या है?" बोकिमय्या ने पूछा। "कुछ खास बात नहीं। उपनयन के लिए जाय तो वहाँ जितने दिन ठहरना होगा उतने दिन के अध्यापन में बाधा पड़ेगी न? मालूम होता है कि आपने उससे कहा, 'खोया हुआ राज्य पाया जा सकता है, परसुगीगा हुआ समः गिर की लौटान नहीं जा सकता।' अब क्या करें? उपनयन के लिए जाना तो होगा ही। और अम्माजी को साथ ले जाना ही होगा। पाठ भी न रुके-यह कैसे हो सकता है ? इसके लिए क्या उपाय करें? यह आपसे पूछना चाहता था।" "मुझे उधर की बातें मालूम नहीं। मेरे लिए निमन्त्रण तो है नहीं फिर भी मुझे कोई एतराज नहीं। अगर आप और हेग्गड़तीजी इस बात को उचित समझें तो आपकी तरफ से मैं आप लोगों के साथ चलने को तैयार हूँ। शिल्पी नाट्याचार्य गंगाचार्य को भी समझा-बुझाकर मैं ही साथ लेता आऊँगा।" "तब ठीक है। मैं निश्चिन्त हुआ। अब जाकर अम्माजी को भेज दूंगा।" कहकर मारसिंगय्या वहाँ से निकल पड़े। थोड़ी ही देर में शान्तला आयी। पढ़ाई शुरू हुई। उधर मारसिंगय्या ने अपना निर्णय हेग्गड़ती को बता दिया। हेगड़े और हेगड़ती की यात्रा, सो भी राजधानी के लिए, कहने की जरूरत नहीं कि वह कोई साधारण यात्रा नहीं थी। उन्हें भी काफी तैयारियों करनी पड़ी। राजकुमार बल्लालदेव, युवराज एरेयंग, युवरानी एचलदेवी, राजकुमार बिट्टिदेव और राजकुमार उदयादित्यदेव-इन सबके लिए नज़राना-भेंट-चढ़ावे आदि के लिए अपनी हस्ती के मुताबिक और उनकी हैसियत के लायक वस्तुएँ जुटायी गयीं। उपनीत होनेवाले वटु को 'मातृभिक्षा देने के लिए आवश्यक चीजें तैयार की। ग्रामीणों की तरफ से भेंट की रकम भी जमा की गयी । हेग्गड़े का परिजन भी कोई छोटा नहीं था। माँ, बाप और बेटी-ये तीन ही परिवार के व्यक्ति थे। पर अध्यापक कवितिलक बोकिमय्या, शिल्पी नाट्याचार्य गंगाचार्य—दोनों सपत्नीक साथ चलने को तैयार हुए। नौकर-नौकरानी में लेंका, गालब्बे और रायण के बिना काम ही नहीं चल सकता है, इसलिए वे भी साथ चलने को तैयार हुए। उन अध्यापकों के परिवारों की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए नौकर, गालब्बे की बहन नौकरानी दासब्बे, फिर रक्षकदल के सात-आठ लोग-इन सबके साथ वे सोसेऊरु के लिए निकले। हेगड़े, हेग्गड़ती और छोटी अम्माजी के लिए एक, अध्यापकों के लिए एक, बाकी लोगों के लिए एक, इस तरह पट्टमहादेवी शान्तला :: 35
SR No.090349
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages400
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size8 MB
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