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________________ शान्त । भव्यता और सरलता का संगम हैं-यह हमारे बाहुबलि स्वामी। अम्माजी, तुम्हें हमारे इस बाहुबलि स्वामी को बेलुगोल में जाकर देखना चाहिए।" "अप्पाजी, अबकी राजकुमार के उपनयन के अवसर पर जाएँगे न, तब लौटते समय बेलुगोल हो आएँ ?" शान्तला ने पूछा। बोकिमय्या ने पूछा, "किस राजकुमार का उपनयन है, हेग्गड़ेजी?" "होय्सल राजकुमार बल्लालदेवजी का।" "उपनयन कय है?" "अभी इसी माघ मास में।" "कहाँ?" "सोसेकरू में।" "वहाँ से बेलगोल दूर पड़ता है। मैं समझता था कि उपनयन दोरसमुद्र में होगा।" शान्तला ने कहा, "दोरसमुद्र से बेलुगोल तीन कोस पर है, सोसेऊरु से छ: कोस की दूरी पर।" मारसिंगय्या ने आश्चर्य से पूछा, "यह सब हिसाब भी तुम जानती हो?" "एक बार गुरुजी ने कहा था, प्रजाजन में राजभक्ति होनी चाहिए। हमारे राजा होय्सलवंशीय हैं। सोसेऊर, वेलापुरी, दोरसमुद्र-ये तीनों होयसल राजाओं के प्रधान नगर हैं। वेलुगोल जैनियों का प्रभान यातायात और शिवगा शैवों का। यह सब गुरुजी ने बताया था।" गुरु बोकिमय्या ने कहा, "बताया नहीं, इन्होंने प्रश्न पर प्रश्न पूछकर जाना है।" मारसिंगय्या ने उठ खड़े होते हुए कहा, "अब पढ़ाई शुरू कीजिए। पढ़ाने के बाद जब घर जाने लगें तो एक बार हमसे मिलकर जाइएगा। आपसे कुछ बात करती है। पढ़ाई समाप्त होने पर मुझे खबर दीजिएगा।" तब हठात् शान्तला वहाँ से उठकर जाने लगी। "कहाँ जा रही हो, अम्माजी?" "आप बातें पूरी कर लें, अप्पाजी। अभी आयी।'' कहकर वह चली गयी। "देखिए, हेग्गड़े जी, इस छोटी उम्र में अम्माजी की इंगितज्ञता किस स्तर की "समझ में नहीं आया।" "आपने कहा न? मुझसे बात करनी है, जाने के पहले खबर दीजिए। बात रहस्य की होगी, उसके सामने बात करना शायद आप न चाहते हों; इसलिए आपने बाद में खबर देने के लिए कहा है-यह सोचकर अम्माजी अभी बातें कर लेने के लिए आपको समय देने के इरादे से चली गयी।" 34 :: पट्टपहादेवी शान्तला
SR No.090349
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages400
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size8 MB
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