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________________ वास्तव में वह अन्यत्र एक वसति-गृह में रह रहा था, इसलिए सम्पर्क का अवसर बहुत कम मिल पाया। मारसिंगय्या और सिंगिमय्या दोनों की एक राय थी कि डाकरस होशियार, निष्ठावान् और उदार है, उसका बड़ा भाई माचण अपने पद पर इतरानेवाला अहंभावी है। असल में दण्डनायक ने अपने घर में उसके बहिन-बहनोई और भानजी को जो सत्कार दिया था उसपर सिंगिमय्या को आश्चर्य भी हो रहा था, क्योंकि दोरसमुद्र आने पर चामच्चे के प्रभाव के बारे में काफी सुन चुका था। इधर युवराज-युवरानी, बड़ी रानी और राजकुमारों के अचानक प्रस्थान का समाचार दोरसमुद्र के निवासियों के लिए एक आश्चर्यजनक बात बन गयी थी। उसमें भी खासकर दण्डनायक परिवार के लिए यह वज्रपात-सा था। बिना अते-पते के एकदम बड़ी रानी और कुमारों के साथ युवराज और युवरानीजी का प्रस्थान | यह कैसे हो सकता है ? यह सब पूर्व-निश्चित है। हमें मालूम न होने देने का अन्दर-ही--अन्दर कुछ षड्यन्त्र रचा गया है। यह कवि भी ऐसा निकला कि उसने जिस पत्तल में खाया उसी में छेद किया। जानती हुई भी एक बात भी कहे बिना, खाकर जानेवाली हेग्गड़ती ने भी कुछ नहीं बताया, वह बड़ी धोखेबाज है । चामव्वा का मन उद्विग्न था, क्रोध से वह आग-बबूला हो बड़बड़ाने लगी, "युवरानी को तो उस हेग्गड़ती को लड़की को ही महारानी बनाने की इच्छा है। मुझे सब मालूम है।" बेचारी पद्मला यह सब सुनकर किंकर्तव्यविमूढ़ हो गयी। चिण्णम दण्डनायक और कुन्दमराय पूर्व-निर्दिष्ट रीति से वेलापुर में युवराज और उनके परिवार के रहने की व्यवस्था कर चुके थे। वह पोय्सल राजधानी से केवल तीन कोस की दूरी पर था इसीलिए आवश्यक प्रतीत होने पर राजधानी आने-जाने को सहूलियत एरेयंग प्रभु को थी। कवि नागचन्द्र को बेलापुर दोरसमुद्र से अच्छा लगा। नदी-तीर पर बसी यह जगह बेलापुरी पोय्सल राज्य-सीमा के वक्षस्थल-सी और याची नदी उस सीमा के कटिबन्ध-सी लग रही थी। नागचन्द्र तो थे कधि ही, उनकी कल्पना चक्षु में पोय्सल राज्य-पुरुष का यह रूप बस गया था। वेलापुरी पोय्सल राज्य के प्रधान नगरों में केन्द्र-स्थान था। पूर्व की ओर दोरसमुद्र, पश्चिमोत्तर में सोसेकरु, दक्षिण में यादवपुरी, इन तीनों का केन्द्र वही माना जाता था। वह राज्य–विस्तरण का समय था। राज्य-सीमा का जैसे-जैसे विस्तार हुआ, 280 :: पट्टमहादेवी शान्तला
SR No.090349
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages400
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size8 MB
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