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________________ "दण्डनायिकाजी, यह सब क्यों ? अभी आपके यहाँ बहुत मांगलिक कार्य सम्पन्न होने हैं, यह सब देना तभी अच्छा होगा। इसे अभी लेते हुए संकोच होता है।" माचिकव्वे ने अपनी झिझक व्यक्त की।। "मंगल द्रव्य के साथ जो दिया जाता है उससे किसी सुमंगली को इनकार नहीं करना चाहिए, हेग्गड़तीजी। मैंने कुछ पहले से सोचा न था। आखिरी वक्त जो लगा सो दे रही हूँ। यह दण्डनायक और हेगड़े के घरानों के स्नेह के प्रतीक के रूप में स्वीकार करें।" चामध्ये ने कहा। कोई दूसरा चारा नहीं था, हेगगड़ती ने इस भावना से स्वीकार किया कि यह एक अच्छी भावना के अंकुरित होने का प्रथम प्रतीक बने। माँ ने जब लिया तो बेटी क्या करती, उसने भी लिया। हेगड़े-दम्पती ने दण्डनायक को सपरिवार एक बार अपने यहाँ आने का निमन्त्रण दिया।"इन नाट्याचार्य को भी साथ लाइए। यदि कोई आक्षेप न हो तो वहीं के मन्दिर में आपकी बच्चियों के गायन और नर्तन की व्यवस्था करूँगा। बहुत अच्छा गाती हैं और नृत्य भी करती हैं। वास्तव में पिछली बार जब हम आये थे तो सुना था कि उनका शिक्षण चल रहा था। इतने थोड़े समय में इतनी अच्छी तरह सीख गयी हैं।" हेग्गड़े मारसिंगय्या ने कहा। हँसी-खुशी से सबने विदा ली। चामला रास्ते तक आयी। पद्मला ने प्रधान द्वार तक आकर शान्तला का हाथ अपने हाथ में लेकर कहा, "भूलना नहीं।" "हम छोटे गाँव में रहनेवाले हैं। हम आपको भलेंगे ही नहीं। आप भी हमें न भूलें।" शान्तला ने कहा। "भूलेंगी कैसे, रोज चामला आप लोगों के बारे में बात करती रहती है।" पद्मला बोली। "आप तो उसकी दीदी ही हैं न, मैं भी कैसे भूलूंगी?'' इस छोटे से सम्भाषण से उनमें मैत्री का द्वार तो खुल गया, अब यह देखना है कि उसके अन्दर से कितनी रोशनी बिखरती है। ये सब बातें सुनकर एनलदेवी भी आश्चर्यचकित हुईं। प्रस्थान के पहले राजमहल में भी उनका योग्य सत्कार किया गया। मारसिंगय्या अपने गुप्तचर कार्य का सारा वृत्तान्त युवराज एऐयंग प्रभु को सुना चुका था। बड़ी रानी चन्दलदेवी का तो भाभी और अम्माजी को विदा देते हुए गला भर आया, आँखें भर आयीं । वह गदगद हो गयीं, मुंह से बात तक न निकल सकी। चलते समय शान्तला ने महाराज युवराज और युवरानी को प्रणाम किया। कवि नागचन्द्र को साष्टांग प्रणाम किया। कवि नागचन्द्र की आँखें भर आयीं। हेगड़े परिवार की यात्रा सिंगिमय्या के नेतृत्व में आगे बढ़ी। बाद में हेगड़ेजी को मालूम हुआ कि सिंगिमच्या डाकरस दण्डनायक के घर भी आतिथ्य लेने गया था! एट्टमहादेवी शान्नला :: 285
SR No.090349
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages400
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size8 MB
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