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________________ "यह मुझपर छोड़ दीजिए।" "ठीक।" "आज बड़ी रानीजी पाठशाला में आ रही हैं, यह बात मालूम है न?" "जी हाँ, मालूम है।" कहकर कवि नागचन्द्र चला गया और एचलदेवी सोचने लगी, अब तो यह स्पष्ट हो गया कि चामव्वा ने विद्वेष का बीज बोया है। उसे जड़ से उखाड़ फेंकना ही चाहिए, मेरे बेटे के दिल में यह बीज अंकुरित हो पेड़ बन जाए, मैं ऐसा कभी न होने दूंगी। कवि नागचन्द्र को लगा कि उसने दूसरे विषय का जिक्र नहीं किया होता तो अच्छा होता। युवरानीजी ने जो निश्चय प्रकट किया उससे वह दंग रह गया था। उसने युवरानीजी को कड़ा निर्णय करते हुए स्वयं देखा था। इस निर्णय का पर्यवसान क्या होगा, इसी ऊहापोह में उसने पाठशाला में प्रवेश किया। बल्लाल और बिट्टिदेव पहले ही उपस्थित हो गये थे। चालुक्य बड़ी रानी चन्दलदेवी और शान्सला अन्दर आयीं तो सबने उठकर प्रणाम किया। "बैंठिए, बैठिए, हमारे आने से आपके काम में बाधा नहीं होनी चाहिए। हम केवल श्रोता हैं।" कहती हुई बड़ी रानीजी एक दूरस्थ आसन पर बैठ गयीं। शान्तला बिट्टिदेव से थोड़ी दूर पर बैठी। बल्लाल ने नाक-भौंह सिकोड़कर उसकी ओर एक टेढ़ी नजर से देखा। बड़ी रानीजी पीछे बैठी थी, इसलिए वह उसका चेहरा नहीं देख सकी। नागचन्द्र ने देखकर भी अनदेखा कर दिया, पढ़ाना शुरू किया, "कल हम किस प्रसंग तक पहुँचे थे?" "आदि पुराण के अष्टम आश्वास में उस प्रसंग तक जहाँ यह चिन्ता की गयी है कि पुरुदेव अर्थात् प्रथम तीर्थंकर ऋषभनाथ की दोनों पुत्रियाँ भरत की बहिन ब्राह्मी और बाहुबली की बहिन सौन्दरी विद्याभ्यास के योग्य आयु में प्रवेश कर चुकी हैं।" विट्टिदेव ने उत्तर दिया। "वहाँ तक कहाँ पहुँचे थे ? यही तो था कि बाहुबली की माँ सुनन्दा ने सौन्दरी नापक पुत्री को जन्म दिया।" कुमार बल्लाल ने आक्षेप किया। "तुम बीच में ही चले गये थे।" बिट्टिदेव ने उसका समाधान किया। "तो मेरे जाने के बाद भी पढ़ाई हुई थी क्या?" बिट्टिदेव ने कहा, "हाँ।" और नागचन्द्र ने स्पष्ट किया, "वहाँ से आगे का विषय केवल वर्णनात्मक है। उसका सारांश यह है कि पुरुदेव ने अपने सब बच्चों को उनके योग्य सुख-सुविधाओं में पाल-पोसकर इस योग्य बना दिया कि वे यथा-समय विद्याभ्यास के लिए भेजे जा सकें। चाहें तो उस अंश को मैं फिर से पढ़ा दूंगा।" पट्टमहादेवो शान्तला :: 257
SR No.090349
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages400
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size8 MB
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