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________________ गुरुवर्य के मन में ऐसी भावना के उत्पन्न होने में आश्चर्य ही क्या है, यह सोचती हुई एचलदेवी ने पूछा, "अच्छा कविजी, और कुछ?" "एक विषय और है और वह तात्कालिक है। इस बात की ओर सन्निधान का भी ध्यान आकर्षित करना मेरा कर्तव्य है। सन्निधान की आज्ञा से कुमारी शान्तला भी कक्षा में उपस्थित रहती है, लेकिन यह बात बड़े राजकुमार को ऊँची नहीं लगती। इस पर मैं क्या करूँ, कुछ समझ में नहीं आ रहा है।" "इस विषय में बड़े अप्पाजी ने सीधा कोई जिक्र किया आपसे?" "सीधा जिक्र तो नहीं किया। दो-तीन दिन पहले किसी सन्दर्भ में जब वे अकेले थे तब मैंने कहा कि पढाई पर विशेष श्रद्धा रखनी चाहिए तो उन्होंने कहा कि जिस-तिस के साथ बैठकर सीखने में क्या कष्ट होता है, सो आपको मालूम नहीं । कल उस लड़की के आने मोड़ी ही देर बाद कोई महानगमले चले गये।" "यह अच्छा गुण नहीं, कविजी। मैं खुद उसके इस बरताव के बारे में उससे खुलकर बात करूंगी।" युवरानी ने कहा। उनके कहने की रीति निश्चित थी और उस कहने में वेदना के भाव भी थे। "अभिमान या ईर्ष्या की दृष्टि से नहीं बल्कि इस दृष्टि से कि वह लड़की थोड़े हो दिन रहनेवाली है, इसलिए उसे या तो मना कर दिया जाए या उसके प्रति उपेक्षा कर दी जाए।" "नहीं, ऐसा नहीं, कविजी। आपने कहा कि पढ़ाई पर अप्पाजी की श्रद्धा कम है, वह उसकी भाग्य-लेखा है, फिर भी आप उसके सुधार की सलाह दे सकते हैं। किन्तु, यदि आपके मन में ऐसी कोई भावना हो, तो स्पष्ट कह दीजिए कि वेतन राजमहल देता है तो मैं होगड़े की लड़की को क्यों पढ़ाऊँ?" "शान्तला के प्रति मेरी वैसी भावना नहीं, एक आदर्शवादी गुरु होने के नाते कदापि नहीं हो सकती जैसी आपने समझ ली। बल्कि मेरा अनुभव तो यह है कि वह एक ऐसी सूक्ष्मग्राही शिष्या है जिसे पाकर कोई भी अपना सौभाग्य समशेगा।" "तो तात्पर्य यह है कि आप भी उसके प्रशंसक हैं?" "उसके गुण, शील, स्वभाव, व्यवहार, ऐसे निखरे हैं कि वह किसी को भी प्रभावित कर लेगी।" "अगर वह आपकी कक्षा में रहे तो आपको कोई परेशानी तो नहीं होगी?" "अगर परेशानी हो तो यही उसे दूर भी कर सकती है।" "ऐसी हालत में अप्पाजी के इस तरह के व्यवहार का कारण क्या है?11 "यह बताने में मैं असमर्थ हूँ।" "अच्छा, मैं देख लूंगी।" "फिर भी मेरी सलाह मान्य होगी...।" 256 :: पटुमहादेवी शान्तला
SR No.090349
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages400
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size8 MB
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