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________________ बिताये उन्हें मैं कभी भी नहीं भूल सकती। वास्तव में राजमहल में जन्म लेकर चक्रवर्ती से विवाह करनेवाली मैं बलिपुर में इस सरल और मिलनसार परिवार में रहकर ही समझ सकी कि मानवता का मूल्य क्या है। दूसरों की भावनाओं को समझने की प्रवृत्ति से किस तरह लोगों को एक सूत्र में पिरोया जा सकता है इसकी जानकारी मुझे वहाँ हुई। पद और प्रतिष्ठा के वश में न होकर निष्ठा एवं श्रद्धा को पुरस्कृत करनेवाले युवराज की नीति के फलस्वरूप पोयसल राज्य किस ढंग से बलवान् बनकर रूपित हो रहा है, इसका सम्पूर्ण ज्ञान भी मुझे वहाँ हुआ। चलिकेनायक, सिंगिमय्या, बलिपर के हेगड़े दम्पती, यह अम्माजी, ये हो क्यों बलिपुर में जिन साधारण-से-साधारण लोगों को मैंने देखा, उनमें यदि कुछ लोगों को मिलें. यह मान लेंक, रात्रण, भूतुग, ग्वालिन मल्लि आदि ऐसे हैं जिन्हें भुलाया ही नहीं जा सकता। इनमें कोई अधिक नहीं, कोई कम नहीं । योग्यता में, निष्ठा में, श्रद्धा में सब एक-से हैं, बराबर हैं। इन सबकी जड़ यहाँ है, महाराज के सान्निध्य में, इसका मुझे स्पष्ट प्रमाण मिल चुका है। "बड़ी रानीजी की बात सत्य है। किन्तु उनके इस राज्य को छोड़कर चली जाने के बाद से यहाँ यह मनोवृत्ति कम होती जा रही है। ऊपरवालों के मनोवैशाल्य की बदौलत जो ऊंचे ओहदे पर चढ़े, वे ही अपने अधीन रहनेवालों को गौण समझने लगे हैं। बड़ी रानीजी, निर्णायकों को इस तरह के भेदभाव से दूर रहना चाहिए।" महाराज विनयादित्य ने कुछ उदेग व्यक्त किया। मरियाने दण्डनायक ने प्रधानजी की ओर देखा। दोनों की दृष्टि में ही प्रश्नोत्तर निहित था। महाराज के उद्वेग की पुष्टि की, बड़ी रानी चन्दलदेवी ने, "महाराज का कथन सत्य है । हम इस भेदभाव से मुक्त हुए बिना निर्माण कार्य कर ही नहीं सकते। कल्याण में रहते समय मैं जिस आशा से हाथ धो बैठी थी, बलिपुर में आने पर मैंने उसे फिर पाया। पोव्सलों का यह बल चालुक्यों को मिला तो कन्नड़ प्रजा का सुसंस्कृत राज्य आचन्द्रार्क सुख-शान्ति से विराजमान रह सकता है।" "यह परस्पर सहयोग आपसी विश्वास की नींव पर विकसित होना चाहिए, बड़ी रानीजी। एक-दूसरे पर शंका से तो कोई फल नहीं मिलेगा। अच्छा, यात्रा की थकावट मिटाने को कुछ विश्राम कीजिए । प्रधानजी, बड़ी रानीजी की गरिमा के योग्य इन्तजाम किया है न? ऐसा उन्हें नहीं लगना चाहिए कि पोयसल व्यवहारकुशल नहीं "यथावुद्धि व्यवस्था की गयी है।" प्रधान गंगराज ने विनती की। "महाराज को मेरे विषय में अधिक चिन्ता की जरूरत नहीं है। स्त्रियों की व्यवस्था स्त्रियों पर ही छोड़ दीजिए। युवरानीजी और मैं आपस में हिलमिलकर कर लेंगी।" अब वहाँ से चले, मरियाने आगे, पीछे प्रधान, बाद में बड़ी रानीजी, शान्तला 248 :: पट्टमहादेवी शान्तला
SR No.090349
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages400
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size8 MB
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