SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 220
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पहनकर हो सोती थी। मुझे भी तब बहुत गुस्सा आया। जब बहुत डर हो और गुस्सा भी आया हो तब धैर्य के साथ शक्ति भी शायद आ जाती है। वह पीठ के बल पड़ा था तो लगा कि उसका पेट चीरकर आंतड़ियाँ निकाल दूँ। जोर से हाथ मारकर एक बार खींचा। वह व्यक्ति तोबा करता हुआ, 'मर गया', 'मर गया', चिल्लाने लगा। " पंचों की नजर उसके चेहरे पर बरबस टिक गयी, उसके वे बिखरे बाल, माथे पर लगी कुंकुम की बड़ी बिन्दी और वे खुली बड़ी-बड़ी आँखें बड़ी भयंकर लग रही थीं। पंचों ने उसके बयान की धारा तोड़ी नहीं । " मैं दो कदम पीछे हटी। वह व्यक्ति तुरन्त उठकर भागने लगा। मुड़कर देखा तक नहीं। मैंने सोचा था कि बलिपुरवाले सभी सज्जन हैं, इस घटना के बाद किसी पर विश्वास न करने का निश्चय मन में कर लिया। ऐसे लोग मनुष्य हैं या कुत्ते ? क्या इनकी कोई माँ-बहन नहीं। ये लोग समाज में बड़े भर दूध में बूंद-भर खटाई - जैसे हैं। बड़े चाण्डाल हैं।" पंचों की अपेक्षा से भी अधिक लम्बा बयान देकर चुप हुई मल्लि । 44 'कुछ और कहना है, मल्लि, तो कहो ।" 'कुछ और याद नहीं, मालिक।" +1 'तब बैठी रहो। जरूरत पड़ी तो फिर बुला लेंगे।" मल्लि ओसारे में एक खम्भे के पास बैठ गयी। सब स्त्रियाँ उसकी ओर देखने लग। सब सुनकर अभियुक्त चुपचाप, निरासक्त भाव से ज्यों-का-त्यों खड़ा रहा। इसके बाद दासब्बे की गवाही ली गयी। ग्वालिन मल्लि की बतलायी तालाब और मण्डपवाली घटना दासब्बे ने भी बतायी। दासच्बे के बयानों में कोई फर्क नहीं था। इन दोनों के बयान लेने के बाद हरिहरनायक ने कहा, "दासब्बे, आज तुम्हें देखने कोई आनेवाला था और उसका निश्चय तुम्हारे बहनोई ने किया था, है न?" "हाँ मालिक!" "उस आनेवाले के बारे में तुम्हारी बहन या बहनोई ने तुमसे कुछ कहा था ? " "हाँ कहा था कि वह कोई भारी धनी है और कल्याण शहर का एक बहुत बड़ा हीरे-जवाहरात का सौदागर है। इस गाँव की कुछ ब्याहने लायक लड़कियों को देख भी चुका है। उसे कोई पसन्द नहीं आयी। मेरे बहनोई ने कहा कि अगर तुझे बह पसन्द करेगा तो तुम महारानी की तरह आराम से रह सकोगी। अपनी बहन से भी ज्यादा शान से रह सकोगी।" " तो तुम शादी करने के लिए तैयार हो ?" "मैं कहूँ तो वे लोग छोड़ेंगे? वर मान लेगा तो मामला खत्तम । लड़की को इस बात में कौन-सी आजादी है। जब शादी करनेवाला हीरे-जवाहरात का व्यापारी हो तब पूछना ही क्या। सुनकर तो मेरे भी मुँह से लाकर टपकने लगी।" 226 :: पट्टमहादेवी शान्तला
SR No.090349
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages400
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy