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करनेवाले। अच्छे लोगों के लिए हम गक जैसे सीधे-सादे हैं। कोई हमारे साथ मर्यादा की हद से बाहर व्यवहार करे तो हमारे भी सींग होते हैं। सींग घोंपकर ग्वालिन लड़कियों उसे अपने हाथ का मजा भी चखाती हैं।"
"तो यों कहो कि ऐसा भी कोई प्रसंग आया था।" "इसीलिए तो कहा कि ग्वालिनों के हाथ का मजा कैसा होता है।" "क्यों, क्या हुआ?"
"एक पखवारे पहले, नहीं-नहीं, उससे भी कुछ दिन ज्यादा गुजरे होंगे, मुझे गाँव से बाहर रहना पड़ा था, मालिका हर महीने बान देश, मासिक धर्म के समय, हम गाँव से बाहर रहा करती हैं, हम ग्वालों में यही रिवाज है। इसे सब जानते हैं। उस समय मेरा पति भी गाँव में नहीं था। यह बेचारी दासब्ने हो मुझे भोजन लाकर दिया करती थी।"
पंचों का ध्यान दासब्बे की ओर गया किन्तु उसके कुछ पूछने से पूर्व वे मल्लि की बात पूरी सुन लेना चाहते थे।
वह कहती गयी, "तीसरे दिन रात को मैं अकेली रह गयी। मेरे साथ दो और भी थीं। वे दोनों तालाब में नहा-धोकर चौथा दिन होने के कारण अपने मुहल्ले में चली गयौं। तालाब के बांध पर मण्डप के पास टाट बिछाकर फम्बल ओढ़े सोयी थी। आधी रात का समय था। चांदनी छिटकी हुई थी। अचानक जाग पड़ी। देखती हूं कि एक व्यक्ति नकली चेहरा लगाये मेरे पास धीरे-धीरे आ रहा है। उसने काले कपड़े से अपने को बैंक रखा था। उसे देखकर पहले तो डर गयी। कोई भूत है। फिर भी रात-रात, तीन-तीन दिन गाँव से बाहर खुले में रहनेवाली ग्वालिनों को आम तौर पर इतना डर नहीं रहता। वैसे मैंने उसके पैर देखे । हम आदमियों की तरह पैर की अंगुलियां सामने की ओर थीं, पिण्डली पीछे की ओर, तब निश्चय हुआ कि यह भूत नहीं।" ।
पंच मल्लि का बयान तो सुन ही रहे थे, वे यह भी देख रहे थे कि मल्लि आदमी और भूत में शारीरिक अन्तर किस प्रकार करती है।
उसने आगे कहा, "तब कुछ और ढंग से डर लगने लगा। सारा शरीर पसीनापसीना हो गया। मैं, धीरज धरकर कृष्ण परमात्मा का ध्यान करती हुई हिले-डुले बिना पड़ी रही। वह व्यक्ति मेरे पास, 'बिल्कुल पास आ गया। इधर-उधर देखा। पास बैठा, मेरे मुँह के पास अपना मुँह लाया। उसके मुंह से ऐसी दुर्गन्ध निकली कि बड़ी घृणा हुई, के होने को हुई। नोंद में करवट लेने का-सा बहाना करके पैर जोर से ऐसा झटकारा कि वह ठीक उसके पेट पर लगा। पेट पर पैर का आघात लगते ही वह व्यक्ति लुढ़क गया। मेरा पति मुझसे बहुत मुहब्बत रखता है इसलिए उसने वक्त पर काम आये, इस ख्याल से हमारे गांव के लुहार से कहकर लोहे के नख बनवा दिये थे। गाँव से बाहर जब रात बितानी पड़ती है तब वही हमारे लिए भगवान् है । हमेशा वह
पट्टमहादेवी शान्तला :: 225