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________________ अलंकारों से सजी, घूंघट निकाले ये स्त्रियाँ सुसज्जित बैलगाड़ी में जा बैठीं । माचिकब्वे ने पूछा, "रायण! मालिक कहाँ हैं ?" " वे पहले ही चले गये, मन्दिर में विशेष पूजा की तैयारियाँ ठीक से हुई हैं या नहीं, यह देखने। अब हम चलें ?" रायण ने पूछा । हेरगड़ती ने आज्ञा दी। गाड़ी आगे बढ़ी। जब विवाह के बाद पहली बार पति के घर आयी थी तब वह इसी तरह गाड़ी में सवार होकर मन्दिर गयी थी। इतने पास है कि फिर गाड़ी की जरूरत ही नहीं पड़ी। वह जानती थी कि भगवान के दर्शन को पैदल ही जाना उत्तम है। गाड़ी को खींचनेवाले हृष्ट-पुष्ट सफेद बैल साफ-सुन्दर थे। उनके पैर घुँघुरुओं से सजे और सीधे-तराशे सींग इन्द्रधनुष जैसे रँगे थे। गले में कनी पट्टी और उसमें रंगबिरंगे डोरों से बने फुदने लगे थे और उसके दोनों ओर घोंघों की बनी माला, केसरिया रंग की किनारीवाली पीले रेशम की झूल, कूबड़ पर सुनहरी कारीगरीवाला टोप, माथे पर लटके मणिमय पदक, गले से लटकती घण्टी गाड़ी तरह-तरह के चित्रों से अलंकृत वस्त्र से आच्छादित की गयी थी। गाड़ी के अन्दर गद्दा तकिया और जगहजगह आईने भी लगे थे। जुआ और चाक बड़े आकर्षक रंगों से रेंगे और चित्रित थे। यह सारा शोरगुल और धूमधाम माचिक को अनावश्यक प्रतीत हो रहा था। अपने इस भाव को वह अपने ही अन्दर सीमित नहीं रख सकी। उसकी टिप्पणियों के उत्तर में श्रीदेवी ने कहा, "इससे हमें क्या मतलब? भैया जैसा कहें वैसा करना हमारा काम है।" "तुम तो छूट जाती हो । कल गाँव के लोग कहेंगे, इस हेग्गड़ती को क्या हो गया है, मन्दिर तक जाने के लिए इतनी धूम-धाम, तब मुझे ही उनके सामने सर झुकाना पड़ेगा ।" वह गाड़ी की तरफ एकटक देखनेवाले लोगों को देखने लगी। उसके मन में एक अव्यक्त भय की भावना उत्पन्न हुई। गाड़ी मन्दिर के द्वार पर रुकी ही थी कि शहनाई बज उठी। पुजारियों ने वेदमन्त्रों का घोष किया। श्वेत छत्र के साथ पूर्णकुम्भ महाद्वार पर पहुँचा। महाद्वार पर रेशम की धोती पहने रेशम का ही उत्तरीय ओढ़े शिवार्चन-रत पुजारी की तरह हेगड़े मारसिंगय्या खड़ा था। उसके साथ धर्मदर्शी पुजारी आदि थे। शहनाईवाले महाद्वार के अन्दर खड़े थे । मन्दिर के सामने ध्वजस्तम्भ की जगत पर बैठे रहनेवालों में से एक युवक उसके सामने के अश्वत्थ वृक्ष की जगत के पास भेज दिया गया था। गाड़ी से पहले शान्तला उतरी। बाद में माचिकब्वे हेगड़ती। उनके बाद श्रीदेवी उतरी। श्रीदेवी का उतरना था कि मारसिंगय्या ने दोनों हाथ जोड़ झुककर प्रणाम किया। कहा, "पधारिए ।" माचिकब्बे ने भी तुरन्त झुककर प्रणाम किया। 44 'यह क्या, भैया ? यह कैसा नाटक रचा है, उस नाटक के अनुरूप वेष भी धारण पट्टमहादेवी शान्तला : 205
SR No.090349
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages400
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size8 MB
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