SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 198
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ को सजा लिया। फिर बारी-बारी से सबने उस आदमकद आईने में अपने को देखा। गालब्बे को लगा कि वह आईने में खुद को नहीं किसी और को देख रही है। माचिकब्बे ने मन-ही-मन कहा, अगर चामध्ये मुझे इस रूप में देखेंगी तो ईर्ष्या से जलकर एकदम मर जाएगी। शान्तला ने सोचा, मैं कितनी ऊँची हो गयी हूँ। पिताजी ने दीवार पर जो लकीर बना दी थी उस तक पहुँच गयी हूँ। तीर-तलवार चलाना सिखाने की मेरी व्यवस्था पक्की । श्रीदेवी तो सहज सुन्दरी थी ही, ऊपर से इस सजावट ने उसकी सुन्दरता में चार चाँद लगा दिये। उसके चेहरे पर एक अलौकिक तेज चमक रहा था। माचिकब्बे ने कहा, "श्रीदेवी, अब कोई तुम्हें देखे तो यही समझेगा कि तुम महारानी या राजकुमारी हो।" "ऐसा हो तो भाभी, मुझे इस सजावर की जरूरत नहीं।" श्रीदेवी ने कहा। "क्यों अपने भैया की आज्ञा का पालन नहीं करोगी?" "भाभी, मैं नहीं चाहती कि अब कोई नया बखेड़ा उठ खड़ा हो।" कहती हुई यह आभूषण उतारने लगी! "ऐसा करोगी तो मैं भी आभूषण उतार दूंगी। सोच लो, उन्हें जवाब दना होगा।" श्रीदव ने आभूषण उतारना छोड़ शान्तला को देखा जो कुतूहल भरी दृष्टि से आईने में उसी के प्रतिबिम्ब को देख रही थी, "क्यों अम्माजी, ऐसे क्या देख रही हो?" "फूफीजी, मैं देख रही थी कि आप कैसे कर लेती हैं यह सजावट, बालों को तरह-तरह से गूंधकर कैसे सजाया जा सकता है, किस आकार में उन्हें बाँधा जा सकता है, ये चित्र कैसे बनाये जाते हैं। अगर मैं जानती होती कि आपको यह सब इतना उचित आता है तो मैं अब तक सब सीखकर ही रहती।" "अच्छा, अम्माजी, मैं सब सिखा दूंगी।" श्रीदेवी के ये व्यक्त शब्द थे, उनके अव्यक्त शब्द थे, 'नहीं, अम्पाजी नहीं, अब हालत ऐसी हो गयी है कि तुमसे मुझे अलग किया जा रहा है।' ___ "कल से? नहीं, नहीं, कल मंगलवार है, उस दिन अध्ययन का आरम्भ नहीं किया जाता है। परसों से आरम्भ कर दीजिए।" शान्तला ने आग्रह दुहराया। "अच्छा, ऐसा ही सही।" श्रीदेवी ने उसे आश्वासन दिया, झूठा या सच्चा, यह दूसरी बात है। रायण ने आकर कहा, "मालिक की आज्ञा हुई है, आप लोग अब वहाँ पधारें।" माचिकब्बे चली, बाकी सबने उसका अनुगमन किया। 2114 :; पट्टमहादेवी शान्तला
SR No.090349
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages400
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy