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________________ मारसिंगय्या के इन प्रश्नों पर विचार के लिए यह विवश हो गयी। पंचों के सामने जाएँ तो अपराधी को दण्ड मिलेगा अवश्य, परन्तु यह बात भी खुल जाएगी कि मैं चालुक्यों की बड़ी रानी हूँ । यही बात लेकर लुच्चे-लफंगे अपना उल्लू सीधा कर लेते की कोशिश करेंगे। ये पति-पत्नी अभी अपने प्रभु की आज्ञा का बड़ी निष्ठा से पालन कर रहे हैं। यदि उन्हें यह मालूम हो जाए कि मैं कौन हूँ तो वे परम्परागत श्रद्धा-भाव से व्यवहार करेंगे। इससे मेरा वास्तविक परिचय पाने का और लोगों को भी मौका मिलेगा जिससे राजनीतिक पेचीदगियाँ बढ़ेगी। श्रीदेवी उसी निर्णय पर पहुँची जो स्वयं हेगड़े मारसिंगय्या का था, "भैयाजी, मैं इस बारे में अधिक न कहूँगी। आपकी दूरदर्शिता पर मुझे भरोसा है।" "अब मेरे मन को शान्ति मिली। अब इस बात को फिलहाल यहीं रहने दो। जिसके बारे में तुमने भाभी से बताया था क्या तुम उस आदमी का पता लगा सकोगी?" "हाँ, एक बार नहीं, मैंने उसे इतनी बार देखा है कि उसे भूल ही नहीं सकती। इतना ही नहीं, उसे यह भी मालूम है कि मैं और भाभी कव कौन-से दिन मन्दिर जाते हैं। उसी दिन बह दुष्ट सर्फगा मन्दिर के सामनेवाले ध्वजस्तम्भ की जगत पर या वहाँ के अश्वत्थ वृक्षवाली जगत पर बैठा रहता है।" "ये सब बातें मुझसे पहले क्यों नहीं कहीं, श्रीदेवी? पहले ही दिन जब तुम्हें शंका हुई तभी कह देती तो बात इस हद तक नहीं पहुँचती। उसे उसी वक्त वहीं मसल देता।" "एक-दो बार भाभी से कहने की इच्छा तो हुई। पर मन ने साथ न दिया। जब रास्ते में चलते हैं तब लोग देखते ही हैं, उनसे कहे भी कैसे कि मत देखो। इस सबसे हरना नहीं चाहिए, ऐसा सोचकर भाभी से नहीं कहा।" "अब जो होना था सो तो हो चुका। बीती बात पर चिन्ता नहीं करनी चाहिए। यहाँ से जाने के पहले उसे मुझे दिखा दें, इतना काफी है। बाद को मुझे जो करना होगा सो मैं देख लूँगा।" "अच्छा, भैयाजी, यह किस्सा अब तो खतम हो गया न। अब आप जाकर निश्चिन्त भाव से नाश्ता कर लें।" "अच्छी बात है, नाश्ता तो मैं किये लेता हैं, लेकिन निश्चिन्तता का नाश्ता तभी कर सकूँगा जब तुम्हें उनके हाथों में सुरक्षित रूप से सौंप दूंगा जिन्होंने मुझे तुम्हें धरोहर के रूप में सौंपा है।" "बह दिन भी आये बिना न रहेगा, भैयाजी। शीघ्र ही आनेवाला है।" "श्रीदेवी, कहावत है कि पुस्तके और वनिता पर-हस्त से कभी अगर लौटे तो भ्रष्ट या शिथिल होकर ही लौटेगी, इसलिए मुझे सदा ही भय लगा रहता है। जैसे परिशुद्ध और पवित्र रूप में तुम मेरे पास पहुंचायी गयी हो उसी रूप में तुम्हें उन तक पट्टमहादेसी शान्तला :: 201
SR No.090349
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages400
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size8 MB
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