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________________ "तुम्हारी माँ ने बताया ही नहीं।" 44 'आपने पूछा नहीं, उन्होंने बताया नहीं।" " तो मेरे आने से पहले आप लोगों ने नाश्ता खतम कर दिया।" मारसिंगय्या हँसने लगे। " और क्या करते, आपने ही तो प्रतीक्षा न करने का आदेश दे रखा है। पुरुष लोग अब बाहर काम पर जाते हैं तब उनके ठीक समय पर लौट आने का भरोसा नहीं होता न । " "हाँ, हाँ, तुम बेटी आखिर उसी माँ की हो। खैर, हो चुका हो तो क्या, मेरे साथ एक बार और हो जाए, आओ।" कहते हुए मारसिंगय्या ने कदम आगे बढ़ाया। भार, भैयाजी।" जीदेवी की आशिया की रोज जैसी सहज मुसकान वापस नहीं ला सकी। 44 "कुछ बात करनी थी।" मारसिंगय्या ने धीरे से कहा । 44 'अप्पाजी, आप फूफीजी से बात कर लीजिए। तब तक मैं आपके नाश्ते की तैयारी के लिए माँ से कहूँगी।" कहकर शान्तला वहाँ से चली गयी। मारसिंगय्या बात खुद शुरू नहीं कर सके तो श्रीदेवी ही बोली 44 'भैयाजी, आपके मन का दुःख में समझ चुकी हूँ। डरकर पीछे हटेंगे तो ऐस लफंगों को मौका मिल जाएगा। यह समाज के लिए हानिकर होगा। इसलिए उन लफंगों को पकड़कर पंचों के सामने खड़ा करना और उन्हें दण्ड देना चाहिए।" " श्रीदेवी, तुम्हारा कहना ठीक है। मैं कभी पीछे हटनेवाला आदमी नहीं । सत्य को कोई भी झूठ नहीं बना सकता। परन्तु कुछ ऐसे प्रसंगों में अपनी भलाई के लिए इन लुच्चे- लफंगों से डरनेवालों की तरह ही बरतना पड़ता है। स्वयं श्रीराम ने ऐसे लफंगों से डरने की तरह बातकर सीता माता को दूर भेजा था बुरों की संगति से भलों के साथ झगड़ा भी अच्छा। इन लुच्चों- लफंगों के साथ झगड़ना, इस प्रसंग में मुझे हितकर नहीं मालूम होता। इसलिए... " "श्रीराम और अब के बीच युग बीत चुके हैं। तब तो श्रीराम ने सीताजी की अग्नि परीक्षा ले ली थी, अब क्या मुझे भी वह देनी होगी ? सत्य को सत्य और असत्य को असत्य कहने का आत्मबल होना ही काफी नहीं है क्या ?" "तुम जो कहती हो वह ठीक है। परन्तु हम जिस मुश्किल में फँस गये हैं उसमें आत्म-बल का प्रदर्शन अनुकूल नहीं। हम सब एक राजकीय रहस्य में फँसे हैं। यह बात पंचों के सामने जाएगी तो पहले तुम्हारा सच्चा परिचय देना पड़ेगा जो मुझे ज्ञात नहीं है और उसे जानने का प्रयत्न भी न करने की प्रभु की कड़ी आज्ञा है। उनकी ऐसी कड़ी आज्ञा का कारण भी बहुत ही प्रबल होना चाहिए। ऐसी स्थिति में, अपने आत्मबल के भरोसे अपना परिचय देने को तुम तैयार होओगी ?" 200 :: पट्टमहादेवी शान्तला
SR No.090349
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages400
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size8 MB
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