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________________ लेकर ऐसी भागी कि दहलीज से टकराकर गिर ही गयी होती अगर भोजन के लिए बुलाने आधी गालब्बे ने उसे पकड़ न लिया होता। भोजन के लिए जाती हुई चन्दलदेवी निश्चिन्त थी इस बात से कि शान्तला उसके वास्तविक परिचय से अनभिज्ञ है। धारानगरी पर धावा बोलते समय एरेयंग प्रभु के द्वारा रोके जाने पर भी विक्रमादित्य युद्धरंग में सबसे आगेवाली पंक्ति में जाकर खड़ा हो गया। वास्तव में वह महावीर तो था ही, युद्ध कला में निष्णात भी था। उसके शौर्य साहस की कथाएँ पास-पड़ोस के राज्यों में भी प्रचलित हो गयी थीं। इससे भी अधिक, उसने चालुक्य विक्रम नामक संवत् का आरम्भ भी किया था। इसकी इस सर्वतोमुखी ख्याति और साहस से आकर्षित होकर ही शिलाहार राजकुमारी चन्दलदेवी ने उसके गले में स्वयंवर - माला डाली थी। इसी से अन्य राजाओं के मन में ईर्ष्या के बीज अंकुरित हुए थे। इस युद्ध में प्रभु स्वयं सा दम्मेवारी कर ली थी कि उसका मत था कि विक्रमादित्य युद्धरंग से सम्बन्धित किसी काम में प्रत्यक्ष रूप से न लगे। लेकिन, युद्ध करने की चपलता भी मानव के अन्य चपल भावों-जैसी बुरी है, यह सिद्धान्त यहाँ सत्य सिद्ध हुआ। -मस न उस दिन उसके अश्वराज पंचकल्याणी को पता नहीं क्या हो गया कि वह एक जगह अड़कर रह गया। विक्रमादित्य ने बहुत रगड़ लगायी पर वह रसस-से-7 हुआ। इस गड़बड़ी में शत्रु के दो तीर घोड़े की आँख में और पुट्ठे के पास लगे जिससे वह हिनहिनाकर गिर पड़ा, साथ ही विक्रमादित्य भी जिन्हें तत्काल शिविर में पहुँचा दिया गया। उसकी बायीं भुजा की हड्डी टूट गयी थी जिसकी शिखिर के वैद्यों ने तुरन्त चिकित्सा की । उसे कम-से-कम दो माह के विश्राम की सलाह दी गयी। उसी रात निर्णय किया गया कि महाराज को कल्याण भेजा जाए और उनकी रक्षा के लिए एक हजार सैनिकों की एक टुकड़ी भी । महारानी को बलिपुर से कल्याण भेजने को विक्रमादित्य की सलाह पर एरेयंग प्रभु ने कहा, "यह काम अब करना होता तो उन्हें बलिपुर भेजने की बात ही नहीं उठती थी। दूसरे, शत्रुओं में यह बात फैली है कि जिनके कारण युद्ध किया गया वे महारानी ही इस वक्त नहीं हैं। इसलिए शत्रु अब निराश हैं जिससे युद्ध में वह जोश नहीं रह गया है। ऐसी हालत में यदि शत्रु को यह मालूम हो जाए कि महारानीजी कल्याण में हैं तो युद्ध की योजना ही बदल जाएगी। इसलिए, अब कल्याण में रहनेवाले शत्रु पक्ष के गुप्तचरों को जब तक निकाल न फेंका जाए तब तक महारानीजी का वहाँ जाना ठीक नहीं।" पट्टमहादेवी शान्तला : 185
SR No.090349
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages400
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size8 MB
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