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________________ 'ईश्वर ने उसे प्रेरणा दी है; उस प्रेरणा से इनकार करनेवाले हम कौन होते हैं?' राजधानी में रहते वक्त वह इस विषय में निष्णात घुड़सवारों से प्रशस्ति पा चुकी है। जब हम वहाँ रहे तब हमारे युवराज के द्वितीय पुत्र और इसमें प्रतिदिन स्पर्धा हुआ करती थी। जबसे इस युद्ध की वा गली तबो यह नलवार बा . धनुराधा सीखने की बात कर रही है। किन्तु यहाँ यह विद्या सिखाने योग्य गुरु नहीं है, और इस दृष्टि से वाह अभी छोटी भी है, इसलिए उसके पिता ने उसे एक दीवार के पास खड़ी करके उससे एक बालिश्त ऊँची एक रेखा खींचकर आश्वस्त किया है कि जब वह उतनी ऊंची हो जाएगी तब उसे तीर-तलवार चलाना सिखाने की व्यवस्था होगी। अब वह रोज उस लकीर के पास खड़ी होकर अपने को नापती है।" होगड़ती उम्र में चन्दलदेवी से कुछ बड़ी थी। महारानी को अब यहाँ एकवचन का ही प्रयोग होता था। अब वह शान्तला की फूफी थी। नृत्य-संगीत के पाठ में वह भी उसके साथ रहना चाहती थी, परन्तु स्थिति प्रतिकूल थी, इसलिए वह बाद में फूफी को सीखे हुए पाठ का प्रदर्शन करके दिखाती। एक दिन उसका नया गाना सुनकर चन्दलदेवी बहुत ही खुश हुई, अपने आनन्द के प्रतीक के रूप में हाथ से सोने का कंगन उतारकर उसे देने लगी। शान्तला तुरन्त पीछे हटी, और चन्दलदेवी को एकटक देखने लगी, "क्यों अम्माजी, ऐसे क्यों देखती हो? आओ, लो न? खुश होकर जो दिया जाए उससे इनकार नहीं करना चाहिए।" ___"क्या कहीं घर के ही लोग घर के लोगों को यो पुरस्कार देते हैं ? खुश होकर ऐसा पुरस्कार तो राजघरानेवाले दिया करते हैं; आप राजघराने की नहीं हैं न?" ___ अचानक आयी हेगड़ती ने पूछा, "यह राजघराने की बात कैसे चली? अम्माजी ने ठीक ही कहा है, श्रीदेवी । घरवाले घरवालों को ही पुरस्कार नहीं देते। और फिर, युवरानी ने खुश होकर जो पुरस्कार दिया था, इसने वह भी नहीं लिया था।" उसने सोसेऊरु में हुई घटना विस्तार से समझायी। वह कंगन चन्दलदेवी के हाथ में ही रह गया। उसके अन्तरंग में शान्तला की बात बार-बार आने लगी, 'खुश होकर ऐसा पुरस्कार तो राजघरानेवाले दिया करते हैं; आप राजघराने की नहीं हैं न?' उसने सोचा कि यह लड़की बहुत अच्छी तरह समझती है कि कहाँ किससे कैसा व्यवहार करना चाहिए। उसे यह समझते देर नहीं लगेगी कि वह श्रीदेवी नहीं है, बल्कि चालुक्यों की बड़ी रानी चन्दलदेवी हैं । इसलिए उसने सोचा कि इसके साथ बहुत होशियारी से बरतना होगा। अपनी भावनाओं को छिपाकर उसने हेगड़ती से कहा, "हाँ भाभी, तुम दोनों का कहना ठीक है। मैं तो घर की ही हूँ। पुरस्कार न सही, प्रेम से एक बार चूम लें, यह तो हो सकता है न?" "वह सब तो छोटे बच्चों के लिए है।" शान्तला ने कहा। 180 :: पट्टपहादेबी शान्तला
SR No.090349
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages400
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size8 MB
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