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________________ ओर रवाना हुई है और वे अपना परिचय किसी को न देकर गुप्त रूप से रहें । युद्ध की गतिविधि का समयानुसार समाचार भेजा जाता रहेगा, समाचार न भेज सकने की हालत में बिना घबड़ाये धीरज के साथ रहें। प्रभु एरेयंग ने भी हेगड़े को एक पत्र भेजा, "हिरिय चलिकेनायक द्वारा सब हाल मालूम हुआ, बड़ा सन्तोष हुआ, मन को शान्ति मिली। हेगड़े के साले गड़ सिंगिग के इस में प्रदर्शित फौर्य साहा और युक्तियुक्त व्यवहार की सबने प्रशंसा की है। उनकी सलाह लिये बिना दण्डनायक एक कदम भी आगे नहीं बढ़ाते हैं। सेना की व्यूह रचना में तो यह सिंगिमय्या सिद्धहस्त हैं। उनके इस व्यूह रचना क्रम ने शत्रुओं को बड़े संकट में डाल दिया और उनके लिए बड़ी पेचीदगी पैदा कर दी। अब आगे की सारी युद्ध-तैयारी, न्यूह-रचना, सैन्य - विभाजन आदि सब कुछ उन्हीं पर छोड़ दिया गया है। इसमें उन्हें केवल हमारी स्वीकृति लेनी होती हैं।" हेगड़े सिंगिमय्या की सराहना के साथ ही उन्होंने हेग्गड़ती और शान्तला के बारे में भी बड़े आत्मीय भाव व्यक्त किये। अन्त में उन्होंने शान्तला के अपनी अतिथि से स्नेह-सम्बन्ध के क्रमिक विकास के बारे में जानकारी भी चाहीं । हेगड़े मारसिंगय्या को यह सूचना दी थी कि महाराजा और युवरानीजी को बता दिया जाए कि सब कुशल हैं और सब कार्यक्रम बड़े ही सन्तोषजनक ढंग से चल रहे हैं। एरेयंग प्रभु के आदेशानुसार हेगड़े ने दो पत्र दोरसमुद्र भेजे। फिर वहाँ का समाचार उसी पत्रवाहक के हाथ भिजवा दिया। तब वह बलिपुर में बड़ी रानो चन्दलदेवी हग्गड़ती माचिकब्जे की ननद श्रीदेवी के नाम के रूप में परिचित हो चुकी थीं। उसके लिए इस तरह का जीवन नया था। वहाँ हर वक्त नौकर-चाकर हाजिर रहते, यहाँ उसे कुछ-न-कुछ काम खुद करना पड़ता । बसदि के लिए माचिकब्बे के साथ थाल-फूल लेकर पैदल ही जाना होता था । 'सरल जीवी माचिकब्जे से वह बहुत हिल-मिलकर रहने लगी। वहाँ उसे बहुत अच्छा लग रहा था। हेग्गड़ती के व्यवहार से बड़ी रानी को यह अच्छी तरह स्पष्ट हो चुका था कि उनके मायके और ससुराल के लोगों में पोय्सल राज्यनिष्ठा बहुत गहरी है। इस सबसे अधिक, उस इकलौती बेटी को अत्यधिक प्यार से बिगाड़े बिना एक आदर्शजीवी बनाने के लिए की गयी शिक्षण व्यवस्था से उसे बहुत खुशी हुई। वह सोचा करती कि लोकोत्तर सुन्दरी के नाम से ख्यात अगर उसके माता-पिता इस तरह से शिक्षित करते तो यों वेष बदलकर दूसरों के घर रहने की स्थिति शायद नहीं आती। आरम्भ में एक दिन शान्तला को घोड़े पर सवारी करने के लिए सन्नद्ध देख हेग्गड़ती से उसने नव-निश्चित सम्बोधन 'भाभी' के साथ पूछा, "भाभी, बेटी को नाचना गाना सिखाना तो सही है, पर यह अश्वारोहण क्यों ?" - "हाँ श्रीदेवी, मुझे भी ऐसा ही लगता है। उसे अश्वारोहण की आवश्यकता 'शायद नहीं है। मगर उसके पिता उसकी किसी भी इच्छा को टालते नहीं हैं, कहते हैं. पट्टमहादेवी शान्तला 179
SR No.090349
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages400
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size8 MB
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