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________________ "समझ में नहीं आया। एक उदाहरण देकर समझाइए।" "तुम दोनों ने कृष्ण-यशोदा का नृत्य किया न?" "तुम कृष्ण बम की, सुहा दीदो पसौदा बनी थी न?" "गोपिकाओं ने माखन चोरी की शिकायत की थी; तुम्हें मालूम था। उस चोरी की परीक्षा करने तुम्हारी माँ आनेवाली थी, यह तुम आनती थीं। लेकिन जब वह आयो तब तुम्हारा चेहरा तना-सा क्यों था? अपनी करतूत का आभास तक माँ को नहीं मिलने देने के लिए तुम्हें अपने सहज रूप में रहना चाहिए था। फिर कृष्ण के मुँह में ब्रह्माण्ड देखकर यशोदा के रूप में तुम्हारी दीदी को आश्चर्य युक्त दिग्भ्रम के भाव की अभिव्यक्ति करनी चाहिए थी जबकि खम्भे की तरह खड़ी रही। उसने चेहरे पर कोई भात प्रकट नहीं किया।" __ "आपके कहने के बाद ठीक लगता है कि ऐसा होना चाहिए था। परन्तु हमारे गुरुजी ने इसे क्यों ठीक नहीं किया?" "सो मैं क्या जानूं ? क्या कह सकता हूँ ? अनेक बार हम ही को पूछकर जान लेना पड़ता है।" "और हमारा गाना कैसा रहा था ?" "तुम्हारी दीदी की काँसे की-सी ध्वनि में तुम्हारी मृदुल कोमल कण्ठ- ध्वनि लीन हो गयी। क्या तुम दोनों हमेशा साथ ही गाया करती हो?" "हाँ।" "दोनों अलग-अलग अभ्यास करो तो अधिक जंचेगा। तुम्हारी दीदी को लय पर ज्यादा गौर करना चाहिए। गाते-गाते उनकी गति अचानक तेज हो जाती है।" "मेरा?" "क्या कहूँ? मुझे लगा ही नहीं कि मैंने तुम्हारा गाना सुना । जब तुम अकेली गाओगी तभी कुछ कह सकूँगा कि मुझे कैसा लगा।" __ "अभी गाऊँ?" उसने उत्साह से पूछा। बिट्टिदेव पसोपेश में पड़ गया। न कहूँ तो उसके उत्साह पर पानी फिर जाएगा, हाँ कहूँ तो यह गाना माँ के कानों में भी पड़ेगा। इसी उधेड़बुन में उसने कहा, "श्रुति के लिए क्या करोगी?" "अरे, यहाँ तम्बरा भी नहीं है?" "नहीं, वह सोसेकरु में है।" "वहाँ कौन सीखते हैं?" "हमारी माताजी।" "तो और किसी दिन गाऊँगी।" चामला ने कहा। पट्टमहादेवो शान्तला :: 119
SR No.090349
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages400
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size8 MB
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