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"वह गायिका लाखों में एक है। गा वामी की इन्ध है. को जारे. लेकिन ऐसी कन्या को तो राजघराने में ही जन्म लेना चाहिए था।"
"अच्छी वस्तु को श्रेष्ठ स्थान पर ही रहना चाहिए, यही आपकी अभिलाषा है, ठीक है न?"
"आपके समक्ष हम और क्या कह सकते हैं?" कहकर पुजारी प्रसाद देता आगे बढ़ चला। पद्मला को प्रसाद देते हुए उसने पूछा, "आप गा सकती हैं, अम्माजी? गा सकती हों तो भगवान् के सामने प्रार्थना का एक गीत गाइए।" पद्मला ने अपनी माँ की ओर देखा जिसने आँखों ही से कुछ ऐसा इशारा किया कि युवरानी को सलाह के तौर पर कहना पड़ा, "चामवाजी, आपने बताया था कि पद्मला को संगीत का शिक्षण दिलाया जा रहा है।" लेकिन चामव्वे ने ही टाल दिया, "अभी तो वह सीख ही रही है, सबके सामने गाने में अभी संकोच होता है उसे।"
"पद्मला को हो लेकिन चामला को तो संकोच नहीं है, माँ ?"
बीच में कुमार बिट्टिदेव बोल उठा और युवरानी ने उसका समर्थन किया, "गाओ बेटी, भगवान की सेवा में संकोच नहीं करना चाहिए।"
अब माँ की ओर दोनों बच्चियों ने देखा। माँ ने दण्डनायक की ओर देखा। उसने भौहें चढ़ा ली। संगीत उसे पहले ही पसन्द न था। उतने पर भी इस तरह का सार्वजनिक प्रदर्शन तो उसे तनिक भी अभीष्ट नहीं था। किन्तु यह कहने का साहस वह नहीं जुटा पाया क्योंकि युवरानी को सब तरह से सन्तुष्ट कर अपना इष्टार्थ पूरा कर लेने के पति और पत्नी के बीच हुए समझौते का रहस्य बनाये रखना अनिवार्य था। इसलिए दण्डनायक को आखिर कहना पड़ा, "चाम, यदि गा सकती हो तो गाओ, बेटी।"
जबकि चामला ने बात सँभाली, "इस खुले में गाना मुश्किल है, पिताजी।" इस मनचाहे उत्तर का लाभ उठाते हुए दण्डनायक ने, "अच्छा जाने दो, निवास स्थान पर गाना," कहकर यह प्रसंग समाप्त किया।
उस दिन शाम को सब लोग कटवन पर्वत पर चामुण्डराय बसदि में बैठे थे। रेविमय्या ने बिहिदेव के कान में कहा, "छोटे अप्पाजी, हम उस दिन जहाँ बैठे थे वहाँ हो आएँ ?"
"माँ से अनुमति लेकर आता हूँ।" विष्ट्रिदेव ने कहा। रेविमय्या के साथ चला तो कुमार बल्लाल ने पूछा, "कहाँ चले, छाटे
अप्पाजी?"
"न्यहीं बाहर; बाहुबली का दर्शन उधर से बड़ा ही भव्य होता है," कहकर चलते बिट्टिदेव के साथ चामन्ने आदि भी चल पड़े।
उस रात को जिस स्थान से शान्तला के साथ बिट्टिदेव ने बाहुबली को साष्टांग
112 :: पट्टमहादेवी शान्तल्ला