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________________ बेलुगोल जाने का कार्यक्रम बना। इस कार्यक्रम में युवराज रेयंग प्रभु के विजयो होकर लौटने के लिए विशेष पूजा-अर्चना कराने का आयोजन भी था। महाराज की सम्मति से युवरानीजी को भी साथ ले चलने में इससे सुविधा रहेगी। युवरानी की इन लोगों के साथ जाने की इच्छा सचमुच नहीं थी। फिर भी पतिदेव की विजय के लिए करायी जानेवाली इस पूजा-अर्चना में सम्मिलित होने से इनकार भी यह कैसे कर सकती थी? और महाराजा का आदेश मिलने पर तो एचलदेवी के लिए कोई दूसरा चारा ही नहीं रहा इसलिए वह बिट्टिदेव और उदयादित्य को भी साथ लेकर चल पड़ा। युवरानी के आने पर सारी व्यवस्था तो ठीक होनी ही थी। इस यात्रा में यवरानी ने अपना समय प्रधान की पत्नियों के साथ बिताया जिनके अभी तक कोई लड़की नहीं थी। इसलिए बिट्टिदेव, उदयादित्य एचम और बोपदेव इनके साथ रहते थे। बल्लाल इनके साथ रहने पर भी जब समय मिलता तब चामना की टोली में शामिल हो जाता। युवरानी के साथ प्रधानजी की पत्नियों के होने से चामन्चे का दर्जा कुछ कम हो गया। दण्डमायक के कारण उसका मूल्य था। परन्तु अब उसे अपनी मान-प्रतिष्ठा से भी आगे की योजना सूझी। वह अपने समस्त अभिमान को एक ओर रखकर युवरानी को हर तरह से प्रसन्न करने के उपाय करने लगी। यह देखकर युवरानी एचलदेवी ने शुरू-शुरू में कहा, "चामन्चाजी. आप क्यों इतना परिश्रम करती हैं जबकि हर काम के लिए नौकर-चाकर प्रस्तुत हैं।" उत्तर में चामव्या ने कहा, "हमारे युवराज के विजयी होकर लौटने की प्रार्थना के लिए की गयी पूजा-अर्चना की व्यवस्था और उसके लिए की जा रही इस यात्रा में कहीं कोई कमी न रह जाए, इसकी ओर विशेष ध्यान देने का आदेश स्वयं दण्डनायकजी ने दिया है मुझे। इस उत्तरदायित्व को मैं नौकरों पर न छोड़कर सारी व्यवस्था स्वयं करूँगी । दोरसमुद्र लौटने के बाद ही मैं चैन से बैठ पाऊँगी, इस समय तो कदापि नहीं।" चामव्वे के इस उत्तर पर युवरानी एचलदेवी कुछ नहीं बोली। बाहुबली स्वामी की अर्चना और पदाभिषेक के बाद अर्चक ने युवरानी को प्रसाद दिया और कहा, "आपकी सेवा में एक निवेदन है जो यदि गलत हो तो क्षमाप्रार्थी हूँ। पिछली बार राजकुमार के साथ उन हेग्गड़ेजी की जो पुत्री आयी थीं उन्होंने स्वामीजी के समक्ष ऐसा गान क्या कि आज महीनों बीत गये फिर भी वह कानों में गूंज रहा है। प्रतिदिन पूजा के समय उस गायिका कन्या का स्मरण हो आता है। स्वामीजी के आने के समाचार से मुझे आशा बंधी कि वह गायिका भी उनके साथ आएँगी।" __ "वे अपने गाँव चले गये। यह तो हो नहीं सकता था कि वे सदा दोरसमुद्र में ही रहे आते।" पट्टमहादेवी शान्तला :: 14!
SR No.090349
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages400
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size8 MB
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