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________________ बाहरी बरामदे में शान्तला अपनी सखियों के साथ खेल रही थी। वह हात् खेलना छोड़कर रास्ते की ओर भाग चली। रह गयीं तीन सखियाँ जो उसके साथ खेल रही थीं। उसका अनुसरण करती हुई भाग चली । अहाते की दीवार से सटकर खड़ी शान्तला पास आती हुई घोड़ों के दापों की ध्वनि सुनती, जिधर से आवाज आ रही थी उसी ओर नजर गड़े नसीडी सखियों में से एक ने उसके कन्धे पर हाथ रखकर यूछा, "क्या देख रही हो शान्तला?" शान्तला ने इशारे से चुप रहने को कहा। इतने में राज-पथ की ओर मुड़ते हुए दो घुड़सवार दिखाई दिये। घोड़े शान्तला के घर के अहाते के सामने रुके। सवारों की सज-धज देखकर सखियाँ चुपचाप खिसक गयीं। रुके घोड़े हाँफ रहे थे। उनको फाटक पर छोड़कर अन्दर प्रवेश करते राजभों की ओर देखकर शान्तला ने पूछा, "आपको किससे मिलना है?" राजभट शान्तला के इस सवाल का जवाब दिये बिना ही आगे बढ़ने लगे। शान्तला ने धृष्टता से पूछा, "जी! मेरी बात सुनी नहीं? यह हेग्गड़े का घर है। यों घुसना नहीं चाहिए। आप लोग कौन हैं ?" उस ढीठ लड़की शान्तला के सवाल को सुन राजभट अप्रतिम हुए। आठ-दस साल की यह छोटी बालिका हमें सिखाने चली है? इतने में उन दो सवारों में से एक ने बालिका की तरफ मुड़कर कहा, "लगता है कि आप हेगड़ेजी की बेटी अम्माजी हैं। हम सोसेऊर से आ रहे हैं। श्रीमान् युवराज एरेयंग प्रभु और श्रीमती युवरानीजी एचल महादेवी ने एक पत्र भेजा है। हेग्गड़ेजी और हेग्गड़तीजी हैं न?" "हेग्गड़ेजी नहीं हैं, आइए, हेग्गड़तीजी हैं," कहती हुई शान्तला बैठक की ओर चली। राजभटों ने उस बच्ची का अनुसरण किया। महाद्वार पर खड़ी शान्तला ने परिचारिका गालब्बे को आवाज दी और कहा, "देखो, ये राजदूत आये हैं, इनके हाथ-पैर धुलवाने और जल-पान आदि की व्यवस्था करो।" फिर वह राजभटों को आसन दिखाकर, "आप यहाँ विराजिए, मैं जाकर माताजी को खबर दूंगी।" कहकर अन्दर चली गयी। राजभर यन्त्रवत् बरामदे पर चढ़े और निर्देशानुसार गद्दी पर बैठ गये । राजमहल के ये भट पहले ही इस तरह के शिष्टाचार से परिचित तो थे ही। परन्तु इस तरह के पट्टमहादेवी शान्तला :: 19
SR No.090349
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages400
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size8 MB
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