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________________ चतुरता से उनकी योजना, धरो-को-धरी रह गयो। धारानगर की रक्षा के लिए यहाँ पर्याप्त सेना रखकर, परमारों को वाहिनी हमला करने के लिए आगे बढ़ रही थी। इधर स्वयं विक्रमादित्य के नेतृत्व में सेना बढ़ी चली आ रही थी। परमारों को उस सेना का मुकाबिला करना पड़ा। दो बराबरवालों में जब युद्ध हो तब हार-जीत का निर्णय जल्दी कैसे हो सकता है। युद्ध होता रहा। दिन, हफ्ते, पखवारे और महीने गुजर चले । बीचबीच में चरों के द्वारा सोसेऊरु को खबर पहुँचती रही। इधर से आहार-सामग्री और युद्ध-सामग्री के साथ नयी-नयी सेना भी युद्ध के लिए रवाना हो रही थी। एरेयंग प्रभु के नेतृत्व में निकली सेना ने, धारानगर और हमला करने को तैयार परमारों की सेना के बीच पड़ाव डाल दिया। इससे परमारों की सेना को रसद पहुँचना और नयी सेना का जमा होना दोनों रुक गये। परमार ने यह सोचा न था कि उनकी सेना को सामने से और पीछे से दोनों ओर से शत्रुओं का सामना करना पड़ेगा। स्थिति यहाँ तक आ पहुँची कि परमार को यह समझना कठिन न था कि वह निःसहाय है और हार निश्चित है: धारानगर का पत्तन भी निश्चित है। इसलिए उन्होंने रातों-रात एक विशाल व्यूह की रचना कर युद्ध जारी रखने का नाटक रचकर मुख्य सेना को दूसरे रास्ते से धारानगर की रक्षा के लिए भेजकर अपनी सारी शक्ति नगर-रक्षण में केन्द्रित कर दी। युद्धभूमि में व्यूहबद्ध सैनिक बड़ी चतुराई से लुक-छिपकर युद्ध करने में लगे थे। हमला करने के बदले, परमार की यह सेना आत्मरक्षा में लगी है, इस बात का अन्दाज एरेयंग और विक्रमादित्य दोनों को हो चुका था। रसद पहुँचाने का मार्ग नहीं था, पहले से ही वहाँ एरेयंग-विक्रमादित्यों की सेना ने मुकाम किया था। आहारसामग्री के अभाव में समय आने पर परमार की सेना स्वयं ही शरणागत हो जाएगीयह सोन्त्रकर चालुक्य और पोयसल युद्ध-नायकों ने भी कुछ ढील दे दी थी। लुकाछिपी को यह लड़ाई दो-एक पखवारे तक चलती रही। परिणाम वही हुआ--परमार मुकाबिला न कर सकने के कारण पीछे हट गये और राजधानी धारानगर पहुँच गयेयह समाचार गुप्तचरों द्वारा धारानगर से चालुक्य-पोय्सल सेना-नायकों को मिला। एरेयंग और विक्रमादित्य-दोनों ने विचार-विनिमय किया। दोनों ने आगे के कार्यक्रम के विषय में गुप्त मन्त्रणा की। विक्रमादित्य ने वापस लौटने की सलाह दी किन्तु एरेयंग ने कुछ और ही मत प्रकट किया। उन्होंने कहा, "अब हम लौटते हैं तो इसे उचित नहीं कहा जाएगा। लौटने से इस बात का भी झूठा प्रचार किया जा सकता है कि हम डरकर भाग आये। अब पोय्सल-चालुक्यों का गौरव धारानगर को जीतने में ही है। हमें गुप्तचरों द्वारा जो समाचार मिला है उसके अनुसार सन्निधान के साथ महारानी चन्दलदेवी भी आयी हैं; उन्हें उड़ा ले जाने का षड्यन्त्र रचा गया था—यह भी मालूम हुआ है।" 134 :; पट्टमहादेवी शान्तला
SR No.090349
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages400
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size8 MB
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