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________________ "पर्याप्त नहीं यह तो मैंने नहीं कहा, अम्माजी। जिसके हाथ में अधिकार हो उसमें वह गुण रहने पर उसका फल कहीं अधिक होता है। अधिकार के प्रभाव की व्याप्ति भी अधिक होती है-यही मैंने कहा। मैं ब्रह्मा तो नहीं। वे युवराज के दूसरे पुत्र हैं। उनसे जितनी अपेक्षा की जा सकती है उतना उपकार उनसे शायद न हो-ऐसा लगा, इसलिए ऐसा कहा।" "बड़े राजकुमार को परख लेने के बाद ही अपना निर्णय देना उचित होगा, गुरुजी!" "विशाल दृष्टि से देखा जाय तो तुम्हारा कहना ठीक है, अम्माजी।" "विशालता भी मानत्रता का एक अंग है न, गुरुजी?" "कौन नहीं मानता, अम्माजी? विशाल हृदय के प्रति हमारा आकृष्ट होना स्वाभाविक है। हमारी भावनाओं की निकटता भी इसका एक कारण है। इसका यह अर्थ नहीं कि शेष सभी बातें गौण हैं। तुम्हारा यह बोल-चाल का ढंग, यह आचरण...यह सब भी तो मनुष्य की विशालता के चिह्न हैं।" शान्तला झट उठ खड़ी हुई। बोली, "गुरुजी, संगीत-पाठ का समय हो अग्या, संगोत के गुरुजी आते ही होंगे।" __ "ठीक है। हेग्गड़ेजी घर पर हों तो उनसे बिदा लेकर जाऊँगा।" बोकिमय्या ने कहा। "अच्छा, अन्दर जाकर देखती हूँ।" कहती हुई शान्तला भीतर चली गयी। बोकिमय्या भी उठे और अपनी पगड़ी और उपरना सँभालकर चलने को हुए कि इतने में हेग्गड़तीजी वहाँ आयीं। "मालिक घर पर नहीं हैं। क्या कुछ चाहिए था?' हेग्गड़ती माचिकब्ने ने पूछा। "कुछ नहीं। जाने की आज्ञा लेना चाहता था। अच्छा, मैं चलूँगा।" कहते हुए नमस्कार कर बोकिमय्या वहाँ से चल पड़े। माचिकब्बे भी उनके पीछे दरवाजे तक दो- चार कदम चली ही थी कि इतने में संगीत के अध्यापक ने प्रवेश किया। उन्होंने शान्तला को पुकारा।"अम्माजी, संगीत के अध्यापक आये हैं।" शान्तला आयी और संगीत का अभ्यास करने चली गयी। धारानगर का युद्ध बड़ा व्यापक रहा। स्वयं हमला करने के इरादे से भारी सेना को तैयार कर बड़ी योजना परमार ने तैयार की थी 1 परन्तु चालुक्य और पोसलों के गुप्तचरों की पट्टमहादेवी शास्तला :: 133
SR No.090349
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages400
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size8 MB
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