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________________ लम्बी ग्रीवा, ये सब तारतम्य ज्ञानशून्य उस बल्लालदेव को भा गयी थीं। भोजनोपरान्त आराम करने जब राजकुमार निकला तो पाला भी उसके साथ थी। शेष समयों में भी यह उसके सामने रहती लेकिन तब अन्य लोग भी होते थे। इसलिए थोड़ा संकोच रहा करता। पर अब तो केवल दो ही थे। राजकुमार को पलंग दिखाकर आराम करने के लिए पद्मला ने कहा। यह भी बता दिया कि यदि कोई आवश्यकता हो तो यहाँ जो घण्टी टॅगी है उसे बजा दें, वह आ जाएगी। यह कहकर वह जाने लगी। "तुम दोपहर के वक्त आराम नहीं करोगी?" "करूं।" "तब घण्टी बजाने से भी क्या होगा!" "आज नहीं सोऊँगी।" "क्यों ?14 "जय राजकुमार अतिथि बनकर आये हों, तब भला सो कैसे सकती हूँ?" "अतिथि को नींद नहीं आ रही हो तो?' "मतलब?" "क्या माताजी ने यहाँ न रहने को कहा है ?" "उन्होंने तो ऐसा कुछ नहीं कहा।" "ऐसा नहीं कहा तो और क्या कहा है ?" "आपकी आवश्यकताओं की ओर विशेष ध्यान देते रहने को कहा है।" "तुम्हें यह कहना चाहिए था, क्या नौकर नहीं हैं ?" "मुझ-जैसी देखभाल नौकर कर सकेंगे?" "क्या माताजी ने ऐसा कहा है?" "हाँ, प्रत्येक कार्य ध्यान देकर करना और सब तरह से ठीक-ठीक करनाउनकी इच्छा रहती है। कहीं भी कुछ कमी-बेशी नहीं होनी चाहिए। उसमें भी आपके प्रति जब विशेष प्रेम गौरव है तब और अधिक ध्यान देकर देखभाल करनी होगी।" "ऐसा क्यों? मझमें ऐसी विशेष बात क्या है?" "आप तो भावी महाराजा हैं न?" "उसके लिए यह सब क्यों?" "हाँ तो।" "यदि मेरा महाराजा बनना सम्भव नहीं हुआ तो यह सब..." "ऐसा क्यों सोचते हैं आप?" "यों ही।" "मैं आपको बहुत चाहती हूँ।" |12 :: पट्टमहादेवी शान्तला
SR No.090349
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages400
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size8 MB
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