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________________ "मैंने ऐसा नहीं कहा। हमारे कथन का आपने विपरीतार्थ लगाया।" मरियाने दण्डनायक ने उत्तर दिया। "विपरीतार्थ या वैकल्पिक अर्थ करने के लिए मैं कोई व्याकरणवेत्ता नहीं हूँ। महाराज का आदेश था सो मैंने अपना निष्कर्ष बताया। इसमें मेरा कोई स्वार्थ नहीं है। मेरे लिए तो दोनों पूज्य और वन्दनीय हैं।" चिण्णम दण्डनाथ ने कहा। मरियाने दण्डनायक कुछ व्यंग्य भरे शब्दों में बोले, "तो दोनों हमारे लिए पूज्य नहीं हैं-यही आपका मतलब हुआ न?" प्रधान गंगराज ने सोचा कि बात को बढ़ने न देना चाहिए; इसलिए उन्होंने कहा, "दण्डनायक जी, हम यहाँ इस तरह के वाग्य करने के लिए एकत्र नहीं हुए हैं। जैसा कि मैंने पहले ही कहा कि इस विषय का जल्दबाजी में कोई निर्णय लेना उचित नहीं होगा, सब लोग बहुत शान्त मन से सोच-विचार करेंगे-यह सलाह दी थी। अब भी हमारा यही मन्तव्य है। महासन्निधान से आज्ञा लेकर आज की इस विचार गोष्ठी को समाप्त करेंगे।" यह कहकर उन्होंने महाराज की ओर देखा । महाराज ने अपनी सम्मति जता दी। सभा समाप्त हुई। खूब सोच-विचार कर निर्णय करने के लिए सबको पर्याप्त समय देकर छोटे पुत्र उदयादित्य को साथ लेकर सोसेऊरु के लिए युवराज ने प्रस्थान कर दिया। चामन्चे की इच्छा पूरी हुई। मरियाने के आग्रह से स्वयं गंगराज ने कुमार बल्लाल को यहीं ठहराने के लिए महाराज से विनती की थी। एरेयंग प्रभु के बाद पट्टाभिषिक्त होनेवाले राजकुमार हैं न? अभी से उनके योग्य शिक्षण की व्यवस्था करनी चाहिए; फिर सारे राजकाज से परिचित भी कराना होगा-इसलिए उन्हें यहाँ रखना अच्छा है। इस बात को सलाह दी थी। इन सबके अलावा महाराज के संग में रहने के लिए भी उनका ठहरना उचित है-यह भी उनकी सलाह थी। कुमार बल्लालदेव के ठहर जाने में वास्तव में कोई विरोध भावना नहीं थी। इस समय एचलदेवी के मन में यह शंका हुई होती कि यह सब चामचा का षड्यन्त्र है, तो सम्भव था कि वे इसका विरोध करती। फिर भी जितनी खुशी से वे राजधानी दोरसमुद्र में आये थे, लौटते समय उसी सन्तोष से युवराज और युवरानी सोसेकरु नहीं लौट पाये । हाँ, चामव्चे को जरूर असीम आनन्द हुआ। फलस्वरूप चामव्वा ने अपने यहाँ आज के इस आनन्दोत्सव का आयोजन किया था। यह आनन्दोत्सब सभारम्भ भाषी सम्बन्ध के लिए एक सुदृढ़ नींव बने, इसलिए उसने सब तरह से अच्छी व्यवस्था की थी। बेटी पद्मला को समझाकर अच्छी तरह से पाठ पढ़ाया था। उसने बल्लाल का कभी साथ नहीं छोड़ा। उसकी सारी आवश्यकताओं को पूरा करने की जिम्मेदारी उसी पर थी। उसका गोल चेहरा, बड़ी-बड़ी आँखें, जरा फैले होठ, विशाल भाल, सहज ही नखरे दिखाकर अपनी तरफ आकर्षित करने योग्य पट्टमहादेवी शान्तला :: ।।।
SR No.090349
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages400
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size8 MB
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