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________________ सिंहासन पर बैठने की इच्छा हमारे कुमार की कभी नहीं रही। इसलिए यदि सर्वसम्मति से यह कार्य सम्पन्न हो जाय तो इसका विशेष मूल्य होगा। खुले दिल से आप लोग कहें। हमारी इच्छा के विरुद्ध कहना चाहें तो भी निडर होकर कहें। संकोच की कोई जरूरत नहीं, क्योंकि यह एक तरह से आत्मीय भावना से विचार-विनिमय करने के लिए आयोजित अपनों की ही गोष्ठी है । हमारे निर्णय के अनुकूल आप लोग चलेंगे तो हमें लौकिक विचारों से मुक्त होकर पारलौकिक चिन्तन के लिए अवकाश मिलेगा। हमारे कुमार युवराज पर अधिक उतरदायित्व का भार पड़ेगा जरूर, '१५ निर्वहण करने की दक्षता, प्रबुद्धता उनमें है।" प्रधान गंगराज ने मरियाने दण्डनायक की तरफ देखा। "इस उत्तरदायित्व को निभानेवाले युवराज ही तो हैं; अतः वे इस बारे में स्वयं अपनी राय बता दें तो अच्छा होगा।"-मरियाने दण्डनायक ने निवेदन किया। "एक दृष्टि से दण्डनायक की बात ठीक ऊँचती है। जैसे महाराज ने स्वयं ही फरमाया कि युवराज शायद स्वीकार न करें। इसलिए इस सम्बन्ध में निर्णय अभी नहीं करना चाहिए- ऐसा मुझे लगता है। युवराज भी सोचें और हम भी सोचेंगे। अभी तो युवराज यहाँ रहेंगे ही। सबके लिए स्वीकार्य हो-ऐसा निर्णय करेंगे वे।"-प्रधान गंगराज ने कहा फिर थोड़ी देर के लिए वहाँ खामोशी छा गयी। युवराज एरेयंग के मन में विचारों का तुमुल चल रहा था। वे सोच रहे थे-'इन सब लोगों के समक्ष यह सलाह मेरी ही उपस्थिति में मेरे सामने खुद महाराज ने रखी है; इसका कोई कारण होना चाहिए। यदि सभी को मेरा पट्टाभिषिक्त होना स्वीकार्य होता तो तुरन्त स्वीकृति की सूचना देनी चाहिए थी; किसी ने यह नहीं कहा, ऐसा क्यों? महाराज ने स्वयं इस बात को स्पष्ट किया है कि मेरा मन क्या है और मेरे विचार क्या हैं। उन्होंने जो कहा वह अक्षरश: सत्य है। मेरे स्पष्ट विचार है कि महाराज के जीवित रहते मेरा सिंहासनासीन होना उचित नहीं। तिस पर भी मेरे सिंहासनासीन होने के बाद मेरी सहायता करनेवाले इन लोगों को यह बात स्वीकार्य न हो तो पीछे चलकर कठिनाई उत्पन्न हो सकती है। तब महाराज की इस सलाह को न माननेवाले भी कोई हैं ? अगर नहीं मानते हों तो उसका कारण क्या है? युवराज होने के नाते मुझे प्राप्त होनेवाला सिंहासन का अधिकार यदि मुझे मिले तो इसमें किसी और को कष्ट क्यों? हकदार को उसका हक मिले तो किसी को क्या आपत्ति? कौन क्या सोचता है पता नहीं, भगवान् ही जाने। सीधे किसी ने हृदय से यह स्पष्ट नहीं किया, इसलिए लोगों को समझना मेरा पहला कर्तव्य है।' यह विचार कर एरेयंग प्रभु ने कहा, "दण्डनायक ने सही कहा है। उत्तरदायित्व हम पर होगा। तो यह उचित है हमारी राय भी जान लेनी चाहिए। महाराज ने स्वाभाविक रूप से अपने विचार रखे। प्रधानजी ने उनके उन 108 :: पट्टमहादेवी शान्तला
SR No.090349
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages400
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size8 MB
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