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________________ तीन प्रदक्षिणा देकर उनकी वैराग्य भावना की अनुमोदना की और उन्हें वहीं तीर्थों के जलं से अभिषेक कराकर वस्त्राभूषणों से अलंकृत किया। सन्धि -4: 'देवों के द्वारा निर्मित पालकी में विराजमान होकर पार्श्व ने वन में जाकर केशलोंच करके पौषमास की दशमी के दिन जिन दीक्षा धारण कर ली। उनके साथ तीन सौ राजाओं ने भी मुनि दीक्षा धारण की। आठ उपवास के अनन्तर हस्तिनापुर के वणिक् श्रेष्ठ वरदत्त के यहाँ मुनि पार्श्व ने आहार ग्रहण किया, तभी देवों द्वारा पंचाश्चर्य किए गए। अनन्तर पार्श्व ने आहार ग्रहण किया, सभी देवों द्वारा पंचाश्चर्य किए गए। अनन्तर पार्श्व वन में जा कर 'पश्चर्या में लीन हो गये। ___ इधर रविकीर्ति पार्श्व के वैराग्य धारण कर लेने से व्याकुल होने लगे तथा प्रभावती भी शोक विह्वल हुई और अन्त में-"हाय नाथ, तुम्हारा कोई दोष नहीं", पूर्वकृत कर्मों पर ही मुझे रोष आ रहा है। जो स्वामी की गति है, वही मेरे लिए भी योग्य है।" ऐसा सोचकर जिन व्रत को ग्रहण कर लिया। राजा अर्ककीर्ति ने वाराणसी जाकर अश्वसेनको पार्श्व के वैराग्यका इतिवत सुनाया। यह सब सुनकर अश्वसेन पत्री सहित अत्यधिक पुत्र-प्रेम के कारण दुखी हुआ और अन्त में मंत्री के द्वारा प्रतिबोधित होकर शान्ति को प्राप्त हुआ। घोर तपश्चरण करते हुए जब पार्श्व पर्यडकासन पर बैठकर कर्म ऋण का शोषण कर रहे थे, तभी आकाश में अपनी भार्या के साथ विचरण करते हुए कमठ के जीव संवरदेव ने अपने विमान को रुका हुआ देखकर, उसका कारण पाश्चं को पाया। पूर्व जन्म का बैर जिसे ज्ञात हो गया है ऐसे कमट ने उन पाव पर भंयकर जलवष्टि की किन्तु योगी जिनेन्द्र रंच मात्र भी विचलित नहीं हुए। इधर जब संवरदेव पार्श्व पर विक्रिया ऋद्धि के बल से घोर उपसर्ग कर रहा था तभी सुरेश्वर (धरणेन्द्र) का आसन कम्पायमान हुआ। ध्यान से जानकर वह अपनी प्रिया (पद्मावती) से बोला-'हे प्रिये, जिसकी कृपा से सुरपद प्राप्त हुआ, जिसने वह परमाक्षर मंत्र दिया था, उसी श्री पार्श्वप्रभु के ऊपर पृथ्वी तल पर अत्यन्त दुखकारी घोर उपसर्ग हो रहा है:" ऐसा कहकर अविलम्ब जहाँ पार्श्वप्रभु विराजमान थे, वहाँ जाकर स्तुति कर उपसर्ग निवारक कमलासन का निर्माण कर उस पर पाचप्रभु को विराजमान किया और सात फणों को मण्डलाकार कर स्थित कर दिया। इस प्रकार फणीश्वर जब पार्श्व के शरीर की रक्षा कर रहा था, उस समय पद्मावती अपने प्रिय में आसक्त मन वहीं स्थित थी। इर प्रकार यल किए जाने पर संवरदेव के सभी उपसर्ग निरस्त हो गए। HTASKASHeresxesesexes 56 mesesxesxeSTSxsxesxxy
SR No.090348
Book TitleParshvanath Charitra Ek Samikshatmak Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendrakumar Jain
PublisherDigambar Jain Atishay Kshetra Mandir
Publication Year
Total Pages275
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
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