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'बलहद्दचरिउ' नामक दा रचनाओं के साथ ''पासणाचार उ' का भी उल्लेख किया है। 37 इससे यह सिद्ध होता है कि "पासणाहचरिउ" की रचना वि. सं. 1498 के पूर्व हुई थी।
"पासणाहचरित" की एक सचित्र प्रति मिली है, जो रूपनगर (दिल्ली) के श्वेताम्बर जैन शास्त्र भण्डार में संगृहीत है। इस प्रति का प्रतिलिपिकाल वि. सं. 1496 है। यह प्रति कवि के जीवनकाल की है। 3B
रइधू का रचना- काल वि. सं. 1457 से 1530 का माना गया है।39 अतः हम ठोस प्रमाणों के अभाव में यह मान सकते हैं कि "पासणाहचरिउ" का रचना-काल वि. सं. 1490 से 1495 के बीच का समय रहा होगा। "पासणाहचरिउ" का कथासार सधि-1:
प्रथम सन्धि के प्रारम्भ में महाकवि रइधृ ने मंगलाचरण के रूप में श्री पाश्वप्रभु को नमस्कार करते हुए उनके चरित वर्णन करने की सूचना दी है। अनन्तर वर्तमान चौबीस तीर्थङ्कारों की विशेषताओं सहित स्तुति, भूत एवं भविष्यकालीन तीर्थङ्करों का सारण-वन्दना, गौतम-गणधर की वन्दना, भट्टारक सहस्त्रकीर्ति, भट्टारक गुणकीर्ति, भट्टारक यश कीर्ति तथा श्री अशः कीर्ति के प्रमुख शिष्य श्री खेमचन्द्र को प्रणाम किया गया है। अनन्तर रचनास्थल गोपालचल नगर का वर्णन किया गया है। वह नगर इन्द्रपुरी के समान धनथान्यादि से युक्त था, मानो सर्वश्रेष्ठ नगरों का वह गुरु ही था। वहीं का तोमर वंशी वैभव से युक्त प्रसिद्ध शासक डोंगरेन्द्र (डूंगर सिंह) था। उसकी चन्दादे नाम की पट्टरानी थी, उसके एक पुत्र हुआ, जो कीर्तिसिंह के नाम से प्रसिद्ध था। उन्हीं के राज्य में एक वणिक् श्री प्रद्युम्न साहृ हुए, जो व्यसन त्यागी और जैन धर्म में प्रगाढ़ आस्था रखता था। उसके यहाँ उसी के गुणानुरूप श्री खेम सिंह साहू नाम का पुत्र था। उस खेमसिंह की धनवती नाम की पत्नी थी, उसके उदर से चार पुत्र उत्पन्न हुए. जिनके नाम-सहसराज, प्रभुराज, देवसिंह तथा होलिवम्म थे।
37 सुकोसल चरिउ, 1135.7 38 द्र. अनुसन्धान पात्रिका( जनवरी-मार्च सन् 1973) पृ. 50-57 में "महाकवि रइधू कृत
पासपाहचरिठ' की सचित्र प्रति : एक मुल्यांकन शीर्षक से प्रकाशित डॉ. राजाराम जैन
का लेख। 39 रइधू ग्रन्थावली, भूमिका भाग. पृ. 19