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इस कृति के प्रकाशक एवं मुद्रक बधाई के पात्र हैं जिन्होनें इसे सुरुचिपूर्ण ढंग से प्रकाशित कर गरिमा प्रदान की। यह पुस्तक जिनके आर्थिक सौजन्य से प्रकाशित हो रही है, उन दानशील महानुभाव को हार्दिक धन्यवाद। अन्त में मैं सभी प्रत्यक्ष एवं परोक्ष सहयोगियों के प्रति शुभभावना, शुभकामना व्यक्त करता
मेरी भावना है किजय णंतगुणायर भवतमभायर पास जिणेस पणटुभय!। अम्ह हैं दइ जिणवर पणवियसुरणर बोहिलाहु भवि-भवि जि सया।।
पाप... 12,72) अनन्तगुणों के आकर, भवरूपी अन्धकार को दूर करने के लिये भास्कर के समान तथा समस्त भयों से रहित हे पाचं जिनेश! आपकी जय हो। देवों एवं मनुष्यों द्वारा नमस्कृत हे जिनेश्वर, हमारे लिये भव- भवान्तर में सदैव बोधिलाभ दीजिए। सेवा सदन महाविद्यालय बुरहानपुर (म. प्र.)
डॉ. सुरेन्द्र कुमार जैन 'भारती' भगवान महावीर जयन्ती 1997 ई.
विनम्र