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________________ 52, णिय डिंभममाण तिरिय विमाइ रक्खइ बहइ | सुमइणरु। पा, 5:11. 17194 सद्बुद्धि वाला व्यक्ति तिर्यचों को भी अपने बच्चों के समान मानता है, उनकी रक्षा करता है और वध नहीं करता। 53. इय आणिनि चारही पाविय कोहसंसागुनि उ भिन्नइ! पा. 5/12-9/94 घोर पापी चोर के सम्बन्ध में यह (पूर्ववृत्तान्त) जानकर उसका संगम भी भी मत कर 54. पतिय पहियि माय शिकापुः णिया। तिल तिरनु झिज्जइ। पा. 5:13-194 कामुक व्यक्ति परस्त्रियों को देखते ही कामदेव ( के बाण) से बिंध जाता है। यह अपी मन में तिल-तिल करके जलता रहता है। 5. कल ... ! १. वह लोनार दर परत दारा पा. - 14:726 परदाराममन सुल, ब पन नं कीर्ति का विनाशकारी एवं दोनों लोकों के विरुद्ध है। 56. पाविय तणड णेहु कहांध गाँव किन दमियदेहु। पा. 6.9 - 1130 पापी का देहदमन करने वाला नेह कभी भी नहीं करना चाहिए। 57. कुत्थियलिंगिह समाणु णउ किंजई परिचउ ताहँ माणु। पा. 619 -2:130 अभिमानी एवं कुत्सित वेश धारण करने वाले लोगों से न परिचय करना चाहिए और न सम्मान। 58. भवियव्वु ण फेडइ एत्थु कोइ। पा. 6/9-3/730 इस (संसार) में भवितव्यता को कोई नहीं भेंट सकता। 59. जेम घणागमु खणेण पणठ्ठउ तिम संसारसरूउ वि दिन। पा, 6/10-7/132 जिस प्रकार घने बादल का आगमन क्षणभर में नष्ट हो जाता है, उसी प्रकार से संसार का स्वरूप भी वैसा ही है।
SR No.090348
Book TitleParshvanath Charitra Ek Samikshatmak Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendrakumar Jain
PublisherDigambar Jain Atishay Kshetra Mandir
Publication Year
Total Pages275
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
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