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दर्शनावरण :
जो आत्मा के दर्शन गुण को आवृत करे या जिसके द्वारा दर्शन गुण का आवरण किया जाय, वह दर्शनावरण है।
वेदनीय :
जो अनुभव किया जा सके, वह वेदनीय है जिसके द्वारा सुख-दुख का अनुभव हो, वह वेदनीय है।
मोहनीय :
जो मोहित करता है या जिसके द्वारा मोहा जाता है, वह मोहनीय है।
आयु :
जिसके द्वारा नरक, तिर्यञ्च, मनुष्य और देव पर्यायों को प्राप्त हो, वह आयु
है।
नाम :
जो आत्मा का नारकी, मनुष्यादि रूप से नामकरण करे या जिसके द्वारा नामकरण हो, वह नामकर्म है।
गोत्र :
जिसके द्वारा जीव उच्च और नीच कहा जाता है, वह गोत्र है।
अन्तराय :
जिसके द्वारा दाता और पात्र के बीच में विघ्न आवे, वह अन्तराय है या जिसके रहने पर दाता दानादि क्रियायें न कर सके या दानादि की इच्छा से विमुख हो जावे, वह अन्तराय है।
जैन आगम में उपर्युक्त आठ कर्मों में से आदि के चार कर्मों को घातिया और अन्त के चार कर्मों को अघातिया के नाम से अभिहित किया गया है। घातिया कर्मों के घात से केवलज्ञान (सम्यर ज्ञान) और अघातिया कर्मों का नाश होने पर मोक्ष या सिद्ध पद की प्राप्ति होती है।
चतुर्गति 37 1:
गतियाँ चार कही गई हैं
1. नरकगति, 2. तिर्यञ्च गति 3. मनुष्यगति और 4. देवगति ।
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371 रइधू पास 3/21, 3/24, 3/25
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