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________________ महीतल से दस योजन ऊपर इसकी दो श्रेणियाँ विद्याधर समूह से बसी हुई हैं। दक्षिण दिशा की श्रेणी में पचास करोड़ तथा उत्तर श्रेणी में साठ करोड़ सुखकारी पुर स्थित हैं और प्रत्येक पुर में करोड़ गाँव हैं। प्रत्येक गाँव में खेचर राजा राज्य किया करते हैं। उस पर्वत के शिखर पर नौ पूर्णभद्र नामक कूट हैं, जिन्हें देखकर देवगण भी पगुभव का अनुभव करते हैं।278_ सरोवरों एवं गुफाओं को पूर्ण करने वाली गंगा एवं सिन्धु नदियों द्वारा भरत क्षेत्र के छह खण्ड किए गये हैं। (उनमें से दक्षिण भरत के तीन खण्डों में से मध्य का खण्ड आर्यखण्ड है और शेष) पाँच खण्डों में भयानक म्लेच्छों का निवास है। जिन भगवान का धर्म वहाँ नहीं जाता279 आर्यखण्ड धर्म एवं कर्म के भेदों से समृद्ध है। उसकी उत्तदिशा में सुखकारी हिमत्रान्-हिमवन्त नामक कुलाचल हैं। उस कुलाचल का विस्तार 105272119 योजन और ऊँचाई एक सौ यौजन है। अपने आयाम में यह सागर पर्यन्त विस्तृत है, उसके ऊपर ग्यारह सुखकारी कूर हैं, जिनमें व्यन्तरदेव निवास करते हैं। उसके ऊपरी शिखर पर पद्म नामक महाहद है, जिसका आयाम एक सहस्र योजन है। उसकी चौड़ाई इसकी आधी और गहराई दस योजन है। उसके मध्य में एक पुण्डरीक कहा जाता है, जो एक योजन प्रमाण है और कभी भी विलीन नहीं होता। उसकी कर्णिकायें कनकवर्ण की कही गई हैं, जिनका प्रमाण एक-एक कोस का है और जो उत्तम तेज से दीप्त हैं। उस पर श्री नामक देवी अपने-अपने परिजनों के साथ निवास करती हैं और मनोवांछित सुखों का बिलास करती है।280 गङ्गा, सिन्धु एवं रोहित आदि श्रेष्ठ नदियाँ स्वयं पद्महद से निकली हैं। वे गङ्गा आदि नदियाँ सवा छह योजन विस्तृत तथा उससे दस गुने लम्बे समुद्र में गिरती हैं।281 सिन्धु नदी पश्चिम समुद्र में गिरती है, विजयार्ध उनका मित्र है। इससे (इस प्रकार गङ्गा, सिन्धु एवं विजयार्ध पर्वत से विभक्त होकर) भरतक्षेत्र के छह खण्ड हो जाते हैं। हिमवान एवंत की उत्तर दिशा में हैमवत् नाम का क्षेत्र है, जो कल्प वृक्षों से युक्त है। 10525112 योजन प्रमाण वाला हिमवत् नामक पर्चत है। यही हिमवन्त क्षेत्र का भी विस्तार है और समुद्र 28 पास. 5:27:5-12 279 कहीं घत 8 280 पास. 5:24 28 वा धत्ता. १२ Resmashasxesxesxestesses 214 RASICSesxxsrusILSESXASS
SR No.090348
Book TitleParshvanath Charitra Ek Samikshatmak Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendrakumar Jain
PublisherDigambar Jain Atishay Kshetra Mandir
Publication Year
Total Pages275
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
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