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________________ उत्पन्न होकर पूर्वार्जित कर्मों को भोगते हैं।265 इस नरक से लौटकर जीव मनुष्यत्व प्राप्त करता है, किन्तु उसे चारित्र की प्राप्ति नहीं होती,266 सप्तम माधवी नरक : सप्तक नरक माधवी कहा गया है। इसमें एक नरक प्रस्तार है , जिनमें नारकियों के कुल दुखों से पूर्ण रहते हैं, तथा पाँच निकृष्ट बिल हैं। ये बिल इन्द्रक, श्रेणीबद्ध और कुसुमप्रकीर्णक के भेद से तीन प्रकार के हैं 267 इस नरक के जीवों का देह प्रमाण तीन सौ छत्तीस दण्ड एवं दो सौ अठासी अंगुल अधिक एक सौ चबालीस हाथ है68 इस नरक के नारकियों की उत्कृष्ट आयु तैंतीस सागर269 एवं जघन्य आयु बाईस सागर की है।270 इस नरक को काजल के समान काला, घोर अन्धकार पूर्ण तथा दुःखों से व्यास कहा गया है। इस माघवी नरक की पृथ्वी का अपर नाम महातमः प्रभा हैं।271 जिसकी प्रभा प्रगाढ़ अन्धकार के समान है, वह तम:तमप्रभा भूमि है।272 इस नरक में नारकियों का अवधिज्ञान केवल एक कोस पर्यन्त प्रमाण कहा गया है।273 पुरुष तथा मत्स्य इस नरक में पूर्वार्जित कर्मों को भोगते हैं|274 इस नरक के दुःख सहकर जो जीव वहाँ से मरकर लौटता है, वह तिर्यञ्च होता हैं। वह मरकर पुन: नरक में ही जाता है और पूर्वजन्म का स्मरणकर दुःख सहता है275 छठवें एवं सातवें नरक की विविध वेदनायें : छठवें एवं सातवें नरक में तीव्र शीत होती है। यदि वहाँ एक लाख योजन प्रमाण लोहे का गोला डाल दें तो वह भी तीव्र उष्णता के कारण क्षणमात्र में गल जाता है और तीव्र शीत से स्थानान्तर में विलीन हो जाता है। वहाँ क्षेत्रोद्भव ... 265 पास.5:18/9 266 वही 5/18:12 267 वहीं 516 268 वही 5/17 269 वही 5:175 270 बही 5/17/10 271 बही, घत्ता-88 272 सार्थसिद्धि पूज्यपाद : पं. फूलचन्द शास्त्री बीका, हिन्दी व्याख्या 367, पृ. 147 273 पास. 5/1815 274 वही 5:18:9 275 सत्तमणरयहँ जो आवेप्यिणु तिरिंउ होइ पुण दुवखुसहेप्पिणु . परइ पुणु वि सो जाइ मरेप्पिणु, दुक्ख सहइ चिरजम्मु सहेप्पिणु । वहीं 5/18:10.11 ASRestastesesxesesiasis) 212 sxssessiesesxeses
SR No.090348
Book TitleParshvanath Charitra Ek Samikshatmak Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendrakumar Jain
PublisherDigambar Jain Atishay Kshetra Mandir
Publication Year
Total Pages275
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
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