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12. समम्त जीवों का आनन्दमय होना ।
13. भगवान के आगे धर्मचक्र का चलना ।
14. छत्र, चमर, ध्वजा, घण्टादि अष्टमगल द्रव्यों का साथ रहना ।
द्रव्य-विवेचन :
द्रव्य छह होते हैं। 189 धर्म, अधर्म, आकाश, काल, जीव और द्रव्य के छह प्रकार हैं | 190
धर्म द्रव्य :
गमन में परिणत पुद्गल और जीवों को गमन में सहकारी धर्मद्रव्य है। जैसेमछलियों के गमन में जल सहकारी है। गमन न करते हुए पुद्गल व जीवों को धर्मद्रव्य गमन नहीं कराता । 191
पुद्गल ये
अधर्मद्रव्य :
ठहरे हुए पुद्गल और जीवों को ठहरने में सहकारी कारण अधर्म द्रव्य है। जैसे- पथिकों को ठहरने में छाया सहकारी है। गमन करते हुए जीव तथा पुद्गलों को अधर्म द्रव्य नहीं ठहराता है। 192
आकाश द्रव्य :
जो जीवादि द्रव्यों को अवकाश देता है, उसे आकाश द्रव्य कहते हैं। 193 आकाश के दो भेद हैं- लोकाकाश और अलोकाकाश। धर्म, अधर्म, काल, पुद्गल और जीव, जितने आकाश में है, वह लोकाकाश कहलाता है और लोकाकाश से बाहर अलोकाकाश कहलाता है। 194
189 रइव पास, 3/14 190 तत्वार्थसूत्र 5/1
191 गुहारिणाण भ्रम्मो, पुग्गण जीवाण गमण सहयारी ।
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तोयं जह मच्छार्ण, अच्छंता व सो नेई ॥ द्रव्यसंग्रह, गाथा 17 192 ठाणजुदाण अथम्मो पुग्गल जीवाणठाण सहयारी ।
छाया जह पहियाणं अच्छतां क्षेत्र सी धरई । वहीं, गाथा - 18 193 अवगासदाण जोग्गं जीवादीणं वियाग आया।
जेहं लोगागा अल्लोगागासमिदि दुविहं ॥ - वही, गाथा - 19 194 धम्मा धम्मा कालो पुग्गलजीवा य संति जात्रदिये
आयासे सो लोगो, तत्तो परदो अलोगुति ॥ - वही, गाथा-20
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