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________________ Kesxesxes 'तीर्थङ्कर" तीर्थ शब्द से बना है। तीर्थ शब्द की व्युत्पत्ति है- तरति संसारमहार्णव येनः तत् तीर्थम । अर्थात् जिसके द्वारा जीव इस अपार संसार सागर से पार होता है, उसे तीर्थ कहते हैं और ऐसा तीर्थ धर्म ही है, अतः धर्म तीर्थ के कर्त्ता या चलाने वाले को तीर्थङकर कहते हैं। तीर्थङ्कर182 : " अष्ट प्रातिहार्य 183 : तीर्थकर भगवान के आठ प्रातिहार्य निम्नलिखित होते हैं 184 : 1. अशोक वृक्ष का होना, जिसके देखने से शोक नष्ट हो जाय। 2. रत्नमय सिंहासन । 3. भगवान के पीछे भामण्डल का होना। 4. भगवान के मुख से निरक्षरी दिव्य ध्वनि का होना । 5. देवों द्वारा पुष्प वृष्टि होना: 6. यक्ष देवों द्वारा चौंसठ चंदरों का ढोला जान्न । 7. दुन्दुभि बाजों का बजना | चौंतीस अतिशय 185 10 "पासणाहचरिउ " में तीर्थङ्कर भगवान महावीर के चौंतीस अतिशयों से युक्त होने का उल्लेख आया है। इन चौतीस अतिशयों में 10 (दस) जन्म से, (दस) केवलज्ञान होने पर और 14 (चौदह) देवकृत होते हैं। ये चौंतीस अतिशय निम्नलिखित हैं जन्म के दस अतिशय 186 : जन्म के इस अतिशय इस प्रकार हैं : 1. अत्यन्त सुन्दर शरीर 2 अतिसुगन्धमयशरीर, 3. पसेत्र ( पसीना ) रहित शरीर, 4. मलमूत्ररहित शरीर, 5. हित-मित प्रिय वचन बोलना, 6. अतुल्य बल, 7. दुग्ध के समान सफेद रुधिर, 8. शरीर में 1008 लक्षण, 9. समचतुरस्त्रसंस्थान 182 पास 3:10/1 183 बड़ी 4:15,7/1 184 द्र बाबू ज्ञानचन्द जैन (लाहौर) : जैन बाल गुटका. प्रथम भाग, पृ.68 185 रड़धू पास 5/17/1 186 श्री बाबू ज्ञानचन्द जैन (लाहौर): जैन बाल गुटकर, प्रथम भाग, पृ. 65-66 xesxesxes 203 tastestxxxterest
SR No.090348
Book TitleParshvanath Charitra Ek Samikshatmak Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendrakumar Jain
PublisherDigambar Jain Atishay Kshetra Mandir
Publication Year
Total Pages275
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
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