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________________ दो शब्द महाकवि 'रइधू' कृत 'पासमाहर्चात' 'पशपालगन्मों विशिमा स्थान रखता है। इसको कथावस्तु सात सन्धियों में विभक्ति है। रहधू की समस्त कृतियों में यह काव्य श्रेष्ठ, सरस एवं रुचिकर है। इसमें संवाद तत्त्व बड़ा रोचक है। ये संवाद पात्रों के चरित्र चिक्षण में पयांत सहायक होते हैं। 'रइधृ' काष्ठासंघ की माथुर गच्छ की पुष्कर गणांय शाखा मे सम्बद्ध हैं। इनकी लगभग 40 रचनायें प्राप्त होती है। ___पासणाहवरिट' जैनधर्म के तेईसवें तीर्थकर भगवान् पार्श्वनाथ के चरित्र की गौरव -गाथा से सम्बन्धित हैं। 'जिम्मर'का कथन है कि 'वे वर्द्धमान महावीर के निर्वाण के 246 वर्ष पहले विद्यमान थे।'1 'महावग्ग' में जिस वर्षावास का उल्लेख किया गया है, वह पार्श्वनाथीय परम्परा से प्रभावित होना चाहिए । 'डॉ. हर्मन जैकोबी' ने भगवान पार्श्वनाथ को ऐतिहासिक पुरुष माना है। डॉ. ए. एम. घाटे ने लिखा है कि पार्श्वका ऐतिहासिकत्व जैन आगम ग्रन्थों से सिद्ध है। श्री विमलचरमला भी इसी मत के समर्थक हैं। जॉलं शाण्टियर ने 'द हिस्ट्री और जैनाज' में लिखा है कि प्रोफेसर बोकोबी तथा अन्य विद्वानों के मत के आधार पर पार्श्व ऐतिहासिक पुरुष और जैनधर्म के सच्चे स्थापनकत्ता के रूप में माने जाने लगे हैं। भगवान् पार्श्वनाथ की ऐतिहासिकता इस बात से भी सिद्ध होती है कि-"भगवान महावीर ने कहा था कि वे उस धर्म का प्रचार कर रहे हैं जिसका पहले तीर्थकर पार्श्वनाथ ने प्रचार किया था। डॉ. राधाकुमुद मुकर्जी ने अपनी कति 'हिन्द सिविलाइजेशन' में लिखा है कि "पार्श्वनाथ ऐतिहासिक पुरुष थे; 1 Zimmer H. Philosophies of India (keyan paul) 1953, p. 183 महावग्ग 2/1/1 That parsva was a historical person, is now admited by all as very probable-Thesacred book of the East vol. xiv Introduction, p.22 हिस्ट्री एण्ड कल्चर ऑफ इण्डियन पोपुल, खण्ड 2 ( जैनिज्म) पृ. 412 5 इण्डालॉजिकल स्टडीज, भाग--3, 4. 236 37 . केम्ब्रिज हिस्ट्री आव इण्डिया, जिल्द. 1, पृ. 156 व्याख्या प्रज्ञास 5/9, पृ. 227
SR No.090348
Book TitleParshvanath Charitra Ek Samikshatmak Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendrakumar Jain
PublisherDigambar Jain Atishay Kshetra Mandir
Publication Year
Total Pages275
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
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