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अपभ्रंश चरित काव्य : पउमचरिद, रिट्ठणेमिचरिउ, सोका नहर, पंचूरियति ।।
अपभ्रंश का प्रथम महाकवि होने का श्रेय स्वयम्भु को प्राप्त है। महापण्डित राहुल सांकृत्यायन जैसे महारथियों ने स्वयम्भू को हिन्दी का प्रथम महाकवि एवं उनके 'पउमचरिङ' को हिन्दी का प्रथम महाकाव्य स्वीकार किया है। उनके अनुसार संस्कृत काव्य गगन में जो स्थान कालिदाय का है, हिन्दी में तुलसी जिस स्थान पर हैं. प्राकृत में जो स्थान "हाल" ने प्राप्त किया. अपभ्रंश के सारे काल में 'स्वयम्भृ' वहीं स्थान रखते हैं।10 महाकवि स्वयम्भू ने छ: कृतियों को लिखने का गौरव प्राप्त किया, लेकिन अभी तक 'पउमचरिंउ' 'रिटलणेमिचरिउ' एवं 'स्वयम्भू छन्द' वे तीन रचनायें ही प्राप्त हो सकी हैं और 'सोद्धयचरिउ', 'पंचमिचरिउ' एवं 'स्वयम्भू' व्याकरण जैसी कृतियाँ अभी तक अनुपलब्ध हैं। 'पउमचरिड' रामकथा पर आधारित श्रेष्ठ महाकाव्य है, जो 90 सन्धियों में पूर्ण होता है। इनमें से 83 संधियाँ स्वयं स्वयम्भू द्वारा तथा शेष 7 उसके पुत्र त्रिभुवन स्वयम्भू द्वारा निबद्ध हैं। 'रिट्टणेमिचिरिउ' 'हरिवंशपुराण' के नाम से प्रसिद्ध है। यह 112 संधियों में पूर्ण होता है। इस महाकाव्य का 18000 श्लोक प्रमाण आकार है। इस काव्य में 22 वें तीर्थंकर नेमिनाथ. श्रीकृष्ण एवं पाण्डवों का वर्णन मिलता है।11 स्वयम्भू का काल 8 वीं शताब्दी ई. माना जाता है। णायकुमार चरिउ तथा जसहरचरिउ :
अपभ्रंश भाषा के सन्दर्भ में महाकवि पुषपदन्त ( 10वीं शताब्दी ई.) का स्थान महाकवि स्वयम्भू के समान प्रमुख है। इन्होंने 'महापुराण', 'णायकुमारचरिउ' एवं 'जसहरचरिउ' की रचना कर अपभ्रंश भाषा के इतिहास में अपना अमर स्थान बनाया है। गायकुमारचरिउ में नव सन्धियों में श्रुतपञ्चमी का माहात्म्य बतलाने के लिए नागकुमार का चरित वर्णित है। 'जसहरचरिउ' में यशोधर की कथा के माध्यम से जीव-बलि का विरोध किया गया है। पासणाहचरिउ :
शक संवत् 999 में पद्मकीर्ति ने भगवान पाश्वनाथ की कथा को आधार बनाकर 'पासणाहवरिउ' की रचना की। इस काव्य में महाकाव्य के सभी लक्षण
10 . चन्दाबाई अभिनन्दन ग्रन्थ ५. 413 11 जनविद्या (स्वयम्भू विशेष क) . 19-20