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________________ पैरों के खुर पृथ्वी को भग्न करने लगे,55 प्रचण्ड घोड़ों के द्वारा गजयूथ खण्डित कर दिए गए।56 घोड़ो की चञ्चरता सागर के समान थी। घोड़ी पर जीने कसे जाने का भी उल्लेख मिलता है। ___आचार्य सोमदेव ने अश्वसेना की प्रशंसा करते हुए कहा है कि- जिस राजा के अश्वसेना प्रधानता से विद्यमान है, उस पर युद्धरूपी गेंद से क्रीड़ा करने वाली लक्ष्मी प्रसन्न होती है और दूरवर्ती शत्रु भी निकटवर्ती हो जाते हैं। इसके द्वारा वह आपत्ति में समस्त मनोरथ प्राप्त करता है। शत्रुओं के सामने जाना, वहाँ से भाग जाना, उन पर आक्रमण करना, शत्रुसेना को छिन्न-भिन्न कर देना; ये कार्य अश्वसेना द्वारा सिद्ध होते हैं।58 अश्वों में जात्यश्व को प्रधानता दी गई है और उसे विजय का कारण माना है।59 'कौटिल्य अर्थशास्त्र' से ज्ञात होता है कि अश्वगालन को प्रमुखता दी जाती थी। कौटिल्य के ही अनुसार अश्वपालन विभाग के प्रमुख अधिकारी को अश्वाध्यक्ष कहा जाता था।60 रथ सेना : ___ यह चतुरङ्ग सेना का तृतीय उपयोगी अंग था। पासणाहचरिउ' में रथ सेना का संक्षिप्त उल्लेख मिलता है। राजकुमार पार्थ कालयवन से हुए युद्ध में राजा रवि कीर्ति की सहायता करने के लिए "देव घोष" नामक रथ पर सवार होकर गए थे।61 जिस रथ पर राजा, युद्ध आदि करने जाते थे, वे रथ उत्तम धवलवर्ण के छत्र एवं ध्वजाओं से सुशोभित होते थे52 मेरी दृष्टि में छत्र, ऐश्वर्य और ध्वजा स्वतंत्र देश के सूचक होते होंगे। रथ पर आरूढ़ योद्धा धनुष-बाण से लड़ते थे।63 वराङ्गचरित' के इस कथन से भी इसी बात की पुष्टि होती है - रथों पर 55 56 57 58 59 पास. 36-3 वही 3/7.3 वहीं 3/7-6 नीतिवाक्यामृत 22/8 वहीं 229 कौटिलीय अर्थशास्त्रम् 2/30 पास. 36-7 वहीं 377/7-8 वहीं, घत्ता 32 60 61 62 63 ResresTesteresTesrestedesi 165 Sxsxesesxesexested
SR No.090348
Book TitleParshvanath Charitra Ek Samikshatmak Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendrakumar Jain
PublisherDigambar Jain Atishay Kshetra Mandir
Publication Year
Total Pages275
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
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