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________________ तुम्हारी गृहिणी में अनुरक्त है। मेरा कहा हुआ वह वचन (तुम) अपने हृदय में मानो। यह सुनकर सत्यसन्धायक वह मरुभूति बोला-क्या 'माई कमठ ऐसा कर्म कर सकता है? भाई के ऐसे दोष कहकर दुष्टजन बान्धवों के स्नेहभाव में फूट डाल देते हैं। जब राजा ने कमट को कुकर्मी मानकर निकाल दिया तो मरुभूति ने लज्जित होकर ताम्बूल एवं विलेपन छोड़ दिए। दिन रात (वह) अन्यमनस्क रहने (और सोचने) लगा। बान्धव के बिना मन्त्रीपन से क्या ऐसा विचारकर वह राजा के मना करने पर भी भाई से क्षमा याचना करने हेतु गया। पञ्चाग्नि तपस्या से तप्त शरीर वाले भाई को नमस्कार किया और बोला-"तपोलक्ष्मी के धारी हे बन्धुवर, तुम मुझे क्षमा करो, क्षमा करें, मैं तो अविनीत हूँ।" यह कहकर उसके चरणों पर अपना सिर रखकर जब तक वह विनयपूर्वक बोल ही रहा था कि छली कम: शिला के भावात से मर लि. को मार डाला इस प्रकार भ्रातृप्रेम के बदले मरुभूति को अपने प्राण गँवाने पड़े। भाई के प्रति भाई की क्रूरता का उदाहरण कमठ के चरित्र में प्राप्त होता है नारी की स्थिति : 'पासणाहचरिउ' में सुलक्षणा और कुलक्षणा दोनों प्रकार की नारियों का उल्लेख है। अच्छी नारी पत्ति के मन के पोषण करने में सावधान, 5 प्रेम से निबद्ध देह वाली, शील की आगार स्वरूपा, देवगंगा की गति के समान प्रकटित लीलाओं वाली, परिवार की पोषक, शुद्ध शील युक्त, नररत्नों की उत्पत्ति के लिए मानो खानस्वरूप, गति में हंसिनी के समान, वाणी में कोयल के समान, सौभाग्य एवं रूप सौन्दर्य में चेलना के समान अथवा राम के साथ सीता के समान, सुखों की खानि, मधुरभाषिणी, हाव-भाव एवं विभ्रमों की जलवाहिनीठ तथा कामदेव के लिए रति के समान अत्यन्त बुद्धि-मती होती हैं। 3 पासणाहचरिउ 6.5 4 वही 6/8 5 वही 115 6 वहीं 1/6 7 वही 6/3 8 वही 6/15 9 चही 7/9
SR No.090348
Book TitleParshvanath Charitra Ek Samikshatmak Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendrakumar Jain
PublisherDigambar Jain Atishay Kshetra Mandir
Publication Year
Total Pages275
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
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