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________________ तहु तिय वम्मएवि सुवल्लह रयणणिही विव सव्वहैं दुलह । पाणि-पाय-तल-रत्त-सुहंकर रणरणति णेउर णं किंकर । णिव-मंति व गुंफहि गुंफत्तणु जंघजुवलु णं खल मित्तत्तणु । पिहुल-णियंचं वि कडियलु झीणउ णं सिहिणहु भरेण हुठ खीणउ । भुयजुयमाणं मालसमाणउँ णं जिणवर-पय अंचणठाणउं । मुहमंडलु ससि मंडल तुला जणु जोवइ पुणु पुणुमणि भुल्लउ । सीस चिहुर कुसमहँ भरसोहिय गंध लुद्ध छप्पय संमोहिय || 1/10 उस (राजा अश्वसेन) की रत्ननिधि के समान सभी को दुर्लभ एवं अत्यन्त प्रिय वामादेवी नामकी पट्टरानी थी, जिसकी हथेलियाँ और चरणतल रक्तवर्ण वाले और सुखकारी थे, मानों (वे उसके) आज्ञापालक किंकर ही हों। उसकी गुल्फों की गूढ़ता नृप के मंत्री के समान गूढ़ थीं, उसकी दोनों जाधे खल की मैत्री के समान संम्पृक्त थीं. नितम्बविशाल एवं कटिभाग क्षीण था, मानो जिनवर के चरणों के पूजा को स्थान ही हों। उसका मुखमण्डल चन्द्रमण्डल के समान था, जिसे लोग बार-बार इस प्रकार देखते थे, मानो भूली हुई (किसी) मणि को खोज रहे हों। कुसुमों के भार से शोभित उसका केशपाश गन्ध के लोभी मौरों को मोहित कर रहा था। जहा न दुःख रहता है न सुख, न ढेष और न राग, समस्त जीवों में समभाव वालावह शान्त रस माना गया है। शान्तरस का रसराजत्व इसलिए सिद्ध है कि मानव जीवन की समस्त कृतियों का उद्गम शान्ति से ही होता है शान्ति का अनन्त भण्डार आत्मा है। जब आत्मा देह आदि परपदार्थों से अपने को भिन्न अनुभव करने लगती है, तभी शान्तरस की उत्पत्ति होती है। यह वह विशुद्ध ज्ञान और आत्मानन्द की दशा है, जहाँ काव्यानन्द और ब्रह्मानन्द दोनों मिलकर एक हो जाते हैं। जैन कवियों की काव्य रचना का उद्देश्य मनुष्यमात्र में वैराग्य उत्पन्न कर चमोत्कृष्ट सुख-शान्ति की ओर ले जाना रहा है, जिनमें वे सफल हुए हैं60 महाकवि रइधू के 'पासणाहचरिउ' में निवेद भावों को जागृत करने वाले कई स्थल मिलते हैं, जहाँ शान्त रस का प्रभावी परिपाक बन पड़ा है: 59 यत्र न सुर्खन दु:खं द्वेषो नापि मत्सरः। सम:सर्वभूतेषु स शान्तः प्रथितो रसः। भरतमुनि 60 जैन विद्या (खण्ड-2) डॉ. प्रेमचन्द रावका का लेख पृ.66 CSxsnesiestessesmepass 112 dsastessemesesxesed
SR No.090348
Book TitleParshvanath Charitra Ek Samikshatmak Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendrakumar Jain
PublisherDigambar Jain Atishay Kshetra Mandir
Publication Year
Total Pages275
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
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