SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 13
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ शैली पर से अनुमान करते हैं कि वह इंसा की तीसरी चौथी शताब्दी की रचना है। डॉ. कीथम, डॉ. बुलनर आदि इसे इंसा की तीसरी शताब्दी के लगभग की या उसके बाद को रचना गानते हैं, क्योंकि उसमें दीनार शब्द का और ज्योतिष शास्त्र सम्बन्धी कुछ ग्रीक शब्दों का उपयोग किया गया है। दर्दा, न. केशवराव ध्रुव उसे और भी अर्वाचीन मानते हैं। इस नन्थ के प्रत्येक उद्देस के अन्त में जो गाहिणी, शरभ आदि छन्दों का उपयोग किया गया है, वह उनकी समझ में अर्वाचीन हैं। गीति में यमक और सगन्ति विमल शब्द का आना भी उनकी दृष्टि में अर्वाचीनता का होता है। दो दिन्टमिल्न डॉ. यमन आदि विद्वान वीर नि० सं. 530 को ही पङमचरिय का रचनाकाल मानते हैं। पउमरिय ग़मकथा से सम्बद्ध सर्वप्रथम प्राकृत काव्य है। संस्कृत साहित्य में जो स्थान वाल्मीकि रामायण' का है. वहीं प्राकृत में पङमचरिय' का है। इसकी भाषा महाराष्ट्री प्राकृत है। विमलहरि ने हरिवंसचरिंय' भी लिखा था, जो अनुपलब्ध हैं। लगभग 11 वीं शताब्दी विक्रमी में लिखा हुआ 'जावरिय' जम्बृस्वामी के विषय में लिखा गया सुन्दर काव्य है। इसकी रचना नाइलगच्छीय वीरभद्रमुनि के शिष्य गुणपाल मुनि ने की। ग्रन्थ पर 'समराइच्छकहा' और 'कुवलयमाला' का प्रभाव दृष्टिगोचर होता है। धनेश्वर सृरि ने विक्रम संवत् 1095 की भाद्र पर कृष्ण द्वितीया को धनिष्ठा नक्षत्र में 'सुरसुन्दरी चरिय'' काव्य की रचना की। यह एक प्रेमारयानक चरित काव्य हैं। इसमें 16 परिच्छेद हैं और प्रत्येक परिच्छेद में 250 प हैं। कवि ने इस काव्य में जीवन के विविध पहलुओं के चित्रण के साथ प्रेम, विराग और पारस्परिक सहयोग का पूर्णतया विश्लेषण किया है। विक्रम सं. 1129 में 'आख्यानमणिकोश' के रचयिता नेमिचन्द्र ने "यणचूडराय चरिय' की रचना की। इसमें देवामूजा और सम्यक्त्व आदि धमों का निरूपण हैं। यह संस्करा से प्रभावित है, इसकी काव्य छटा दर्शनीय है। । एना-भइक्लोपीडिया आफ रिलिजन एण: इचिम्ल, भाग 7. P. 137 और मोड- रिव्यू दिस. 1914 ई. 4 संस्कृत साहित्य का इतिहास (कोथ) 5 Introduction to Prakrit. 6 जैन साहित्य और इतिहास पृ.91 7 वहीं 7.91
SR No.090348
Book TitleParshvanath Charitra Ek Samikshatmak Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendrakumar Jain
PublisherDigambar Jain Atishay Kshetra Mandir
Publication Year
Total Pages275
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy