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________________ आयु अञ्जली के जल के समान ढलती जाती है। धन एवं सुख इन्द्रधनुष के समान अस्थिर (अथवा) जुए के धन के समान क्षणभर में दूसरे के हो जाते हैं। सन्ध्याकालीन बादलों के रंग के समान राम एवं रुचियाँ भी क्षणिक हैं, कहाँ कि इन्द्रिय सुख व्यभिचारिणियों के समान दूसरे का हो जाता है। स्त्रीभोग तारागण के समान तरल है और जहाँ भाग्य जलधर के समान चपल हैं। नत्र यौवन नदी के पूर के समान क्षीण हो जाने वाला है। इन्द्रियसुख बिजली के समान चंचलहँ। राज्य भोग भी जीर्णपत्र के समान किसी के लिए शाश्वत नहीं होता यह जीव यमराज के द्वारा उसी प्रकार कवलित कर लिया जाता है, जिस प्रकार मृगशावक सिंह के द्वारा ले जाया जाता है।45 जिस प्रकार सरोवर में जल नालियों के द्वारा आता है, उसी प्रकार जीव प्रदेशों में (इन्द्रिय रूपी आस्रव द्वारा) कर्ममल आता है।16 आकाश भ्रमर, काजल, ताल और तमालवर्ण के मेयों से उसी प्रकार आच्छादित हो गया, जिस प्रकार कुपुत्र अपने अपयश से+7 दुर्जनों की कलह के समान उस (संवर देव) ने कहीं भी मर्यादा नहीं रखी48 मुख में लपलपाती हुई जिलासमूह कुशिष्य के मन के समान अत्यन्त चंचल हो रही थी। दुः शील कमठ ने अपने लत्रुभ्राता की रूप में श्रेष्ठ स्त्री को इस प्रकार देखा, जैसे कोई गजेन्द्र सुन्दर हथिनी को50 44 अंजलि जलु च आउसु ढलए। महवाधणु व्व धणु सुह अथिरु। जूवाधणु व वखणि होइ परु। संझानणरंगु व रायरुइा इंदिय सुह परु, जहिं असइमइ. कंतारइ तारायण तरला। जलहर उणाई जहिं विहि चवला। णवजोव्वणु णइपूर व वरसइ। लावण्णु वण्णु दिणि-दिणि ल्हसई। इंदियसुहु तड़ि-तरलत्तणाठा अवसाणि सरीरु ण अप्पणउ। भारुवय जरपत्तुवसरिसु। तह रज्जु भोउ सासर ण कसु। 3/14 45 जीउ तह वि काले कलिज्जइ। हरिणहु डिंभु व सीहें णिज्जइ।13/15 46 'जह सरवरि जलु णालिहिं धाबइ। जीवप्पएसहि तिह मलु आवइ॥ 3/20 47 अलिकज्जल ताल तमाल वण्णु। दुघत्तु व मेहे गयणु छण्णु।। 418 48 दुजणकलहु व कत्थ वि ण माठ। 4:8 49 ललललिय बलिय मुहिं रसणुगणु। अइचंचलु पाइँ कुसीसमणु।। 4/11 50 अवलोइय लहुभायरहु णारि। करिणीव ऊरि र्दै रुबसारि। 63
SR No.090348
Book TitleParshvanath Charitra Ek Samikshatmak Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendrakumar Jain
PublisherDigambar Jain Atishay Kshetra Mandir
Publication Year
Total Pages275
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
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