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________________ विगत - विपाय 1/1 पुष्पदन्त ... पुष्फयंतु 1/1 तीर्थंकर = तित्थयरु 11 शीतल - सीयलु 1 पद = पय / धर्मामृत = धम्मामय 1/। सकल = मयल 11 लोक = लोय 1/1 ण के स्थान पर ण मिलता ही है, पर न के स्थान पर भी ण मिलता है। सभी स्थितियों में यह प्रवृत्ति हैआद्य ... निवारण = णिवारणु 1/1 नाथ = पाहु 111 निज . णिइ 1/1 मध्य- जिनेन्द्र = जिणिंदु 1/1 अर्णत 1/1 अनुक्रमेण = अणुक्कमेण 1/2 अन्यत्व - अणत्तु 3/17 अन्य अण्ण 2/2 अन्त्य- पुनः . पुणु 1/1 ज्ञान णाण 1/1 जिन = जिण 1/1 प्रधानी = पहाणी 11 ध्वनि : झुणी 1/2 येन = जेण 1/2 महाप्राण ध्वनियों में से केवल महाप्राणत्व का रह जानाभ-ह अभिनन्दन - अहिणंदणु 1/1 'पदमप्रभ = पउमप्पह 1/1 विभाति = विहाई 1/3 लाभ = लाह 1/4 अनन्त
SR No.090348
Book TitleParshvanath Charitra Ek Samikshatmak Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendrakumar Jain
PublisherDigambar Jain Atishay Kshetra Mandir
Publication Year
Total Pages275
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
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